अयोध्या (अंग्रेज़ी: Ayodhya) भारत में उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक अति पौराणिक और प्रसिद्ध धार्मिक नगर है। अयोध्या फ़ैज़ाबाद ज़िले में आता है। रामायण के अनुसार दशरथ अयोध्या के राजा थे। श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था। राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के तट पर स्थित है। अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा। अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहाँ आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहाँ आदिनाथ सहित पाँच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।
इस की महत्ता के बारे में जनसाधारण में कहावत प्रचलित है :
गंगा बड़ी गोदावरी,
तीरथ बड़ो प्रयाग,
सबसे बड़ी अयोध्यानगरी,
जहाँ राम लियो अवतार।
अयोध्या पुण्यनगरी है। यह नगरी कई महान महापुरुषों के युग की साक्षी है और यहाँ गंगा- जमुनी तहज़ीब का संगम है। जैन मत के अनुसार यहाँ आदिनाथ सहित 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। बौद्ध मन्यताओ के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या में 16 वर्ष तक निवास किया था।
रामायण में अयोध्या का उल्लेख कोशल जनपद की राजधानी के रूप में किया गया है। वहीं राम जी के जन्म के समय यह नगर अवध नाम से जाना जाता है।
मंदिर के स्थान पर मस्ज़िद का निर्माण
कहा जाता है कि मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने यहाँ मस्जिद बनवाई थी, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था। बाबर 1526 में भारत आया और 1528 तक उसने अपना साम्राज्य अवध तक पहुँचा दिया।
इस विश्वास को वर्ष 1813 – 14 के बाद लोकप्रियता हासिल हुई, जब ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर्वेक्षक फ़्रांसिस बुकानन ने बताया की उसे मस्जिद की दिवार पर एक शिलालेख मिला है जो बाबरी मस्जिद के निर्माण से जुड़ा है।
उसने प्रचलित स्थानीय पारंपरिक कथा का भी उल्लेख किया, जिसके अनुसार औरंगजेब (1658-1707) ने राम को समर्पित एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद मस्जिद का निर्माण कराया था।
जब बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने पर मचा था बवाल
अक्टूबर 1990 को हज़ारों राम भक्तों ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गयी अनेक बाधाओं को पार कर के अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढाँचे पर भगवा ध्वज फहरा दिया।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया और अस्थाई राम मंदिर बनया गया।
16 दिसंबर 1992 को मस्जिद की तोड़ – फोड़ की जीम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।
1993 : भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा 143 (ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रश्न ‘रेफर’ किया। प्रश्न था, ‘क्या जिस स्थान पर ढांचा खड़ा था वहां राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी? इसके जवाब में कोर्ट की पांच जजों की पीठ में से दो जजों ने कहा था कि इस सवाल का जवाब तभी दिया जा सकता है जब पुरातत्व और इतिहासकारों के विशिष्ट साक्ष्य हों और उन्हें जिरह के दौरान परखा जाए।
इस रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुद्दे को लेकर सरकार से और रुख स्पष्ट करने को कहा था जिसके जवाब में तत्कालीन सालिसिटर जनरल ने 14 सिंतबर 1994 को लिखित जवाब दाखिल कर कोर्ट में अयोध्या मसले पर सरकार का नजरिया रखा था। जिसमें सरकार की ओर से कहा गया था कि ‘सरकार धर्मनिरपेक्ष और सभी धर्मावलंबियों के साथ समान व्यवहार की नीति पर कायम है। अयोध्या में जमीन अधिग्रहण कानून 1993 और राष्ट्रपति की ओर सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया रेफरेंस भारत के लोगों में भाईचारा और पब्लिक आर्डर बनाए रखने के लिए है।
इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने करीब 20 महीने सुनवाई की और 24 अक्टूबर, 1994 को अपने निर्णय में कहा- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ विवादित स्थल के स्वामित्व का निर्णय करेगी और राष्ट्रपति द्वारा दिए गए विशेष ‘रेफरेंस’ का जवाब देगी।
राष्ट्रपति रेफरेंस के संदर्भ में 2002 अयोध्या में विवाद की सुनवाई कर रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सच्चाई का पता लगाने के लिए एएसआई को वहाँ खुदाई करने का निर्देश दिया और खुदाई के दौरान पारदर्शिता और दोनो समुदायों के मौजूदगी का पूरा ध्यान रखने के आदेश भी दिए।
अप्रेल 2002 में अयोध्या के विवादित स्थल पा मालिकाना हक को ले कर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की, जो वर्ष 2010 में पूरी हुई।
30 सितंबर, 2010 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के फैसले को टालने की याचिका खारिज किये जाने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने विवादित भूमि को तीन भागों में विभाजित करने का निर्णय दिया। 2:1 के बहुमत के साथ दिये गए इस निर्णय के अनुसार, विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन हिस्सों में विभाजित किया जाना था, इसमें से एक-तिहाई सुन्नी वक्फ बोर्ड को, एक-तिहाई निर्मोही अखाड़े को और शेष एक तिहाई हिस्सा राम लला के मंदिर निर्माण हेतु दिया जाना था जिसका प्रतिनिधित्त्व हिंदू महासभा द्वारा किया गया था।
रोजाना 40 दिन तक की सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने, अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर छह अगस्त से रोजाना 40 दिन तक सुनवाई की थी। इस दौरान विभन्न पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश की थीं।
ऐतिहासिक फैसला
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया
- समग्र विवादित भूमि (2.77 एकड़) हिंदुओं को मिलेगी।
- विवादित 2.77 एकड़ भूमि का कब्ज़ा केंद्र सरकार के रिसीवर (मुकद्दमे के अधीन संपत्ति का सरकारी प्रबंधकर्त्ता) के पास रहेगा।
- मुस्लिमों को वैकल्पिक रूप से विवादित ढाँचे के आसपास केंद्र सरकार द्वारा अधिगृहित 67 एकड़ भूमि या किसी अन्य प्रमुख स्थान पर पाँच एकड़ जमीन दी जाएगी।
- मंदिर निर्माण के लिये 3 महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाया जाएगा। न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि निर्मोही अखाड़ा भगवान राम का शेबैती या उपासक नहीं है लेकिन वह ट्रस्ट का सदस्य बन सकता है।
ट्रस्ट का गठन:
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने 5 फरवरी 2020 को ट्रस्ट का गठन किया और इस की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में की और पूरा प्लान भी बताया। इस ट्रस्ट का नाम “श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र” ट्रस्ट रखा।
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