संस्कृत के श्लोकों में गूढ़ ज्ञान होता है। यदि इन्हें बच्चों को बचपन से पढ़ाया और समझाया जाए तो ये उन में अच्छे संस्कार उत्पन करते हैं और उन को जीवन की परिस्थितियों को सकारात्मक तरीक़ों से संभालने में सहयोग भी करते हैं। यहाँ बताये गये 10 श्लोक बच्चों के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं।
- गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरःगुरुः। साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को सादर प्रणाम ।
2. उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।
भावार्थ: केवल इच्छा मात्र से कोई काम पूरा नहीं होता, उस को पूरा करने के लिए मेहनत करना ज़रूरी होता है। ठीक उसी तरह जैसे सोते हुए शेर के मुख में हिरन अपने आप नहीं आता, बल्कि उसे शिकार करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है।
3. विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।
भावार्थ: विद्या यानी ज्ञान हमें विनम्रता देती है, विनम्रता से पात्रता आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है।
4. काम क्रोध अरु स्वाद, लोभ शृंगारहिं कौतुकहिं।
अति सेवन निद्राहि, विद्यार्थी आठौ तजै।।
भावार्थ: काम, क्रोध, लोभ, स्वाद, श्रृंगार , मनोरंजन, अतिनिद्रा एवं अतिसेवा एक विद्यार्थि को इन 8 चीजों से बचना चाहिए।
5. अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनं:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।
भावार्थ: जो बड़े-बुजुर्गों का आदर करता है और सेवा करता है उस व्यक्ति आयु ,विद्या ,कीर्ति और बल,ये चारो मे सदैव वृद्धि होती है ।
6. षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
भावार्थ: 6 अवगुण नींद, तन्द्रा (थकान), भय, गुस्सा, आलस्य और कार्य को टालने की आदत व्यक्ति के पतन के कारण बनते हैं।
7. न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।
भावार्थ: न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न इसका भाइयों के बीच बंटवारा होता है, और न हीं उसे संभलना मुश्किल होता है. और खर्च करने से बढ़ने वाला विद्या रूपी धन, सभी धनों से श्रेष्ठ है।
8. काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।
भावार्थ: एक अच्छे विद्यार्थि के पाँच लक्षण होते हैं कौवे की तरह हमेशा जानने की इच्छा। बगुले की तरह ध्यान व एकाग्रता। कुत्ते की जैसी नींद, जो हल्की आहट से भी टूट जाती है। कम खाने वाला, आवश्यकतानुसार खाने वाला और गृह-त्यागी।
9. मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं मुखे।
हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते।।
भावार्थ: मूर्खों की पांच निशानीयां होती है, वो अहंकारी होते हैं, उनके मुंह में हमेशा बुरे शब्द होते हैं, वो जिद्दी होते हैं, वो हमेशा बुरी सी शक्लबनाए रहते हैं और दूसरे की बात कभी नहीं मानते.
10. आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः ।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कुर्वाणो नावसीदति ॥
भावार्थ: आलस ही मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है और परिश्रम सबसे बड़ा दोस्त. परिश्रम करने वाले का कभी नाश या नुकसान नहीं होता.
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