सनातन धर्म के अनुसार भगवान ब्रह्मा सृजन के देव हैं , भगवान विष्णु को पालनहार कहा गया है और भगवान शिव को संहार का देवता कहा गया है। भगवान शिव अपने भोलेपन एवं रौद्ररूप के लिए विख्यात हैं। जिस प्रकार इस ब्रह्मण्ड का ना कोई अंत है, न कोई छोर और न ही कोई शूरुआत, उसी प्रकार शिव अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे।
भगवान शिव को हेमेशा तपस्वी के रूप में जाना जाता है देवभूमि उत्तराखंड को महादेव की तपस्थली कहा जाता है। यहाँ हम आप को ऐसे तीर्थस्थान के बारे में बताने जा रहे हे जो की देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी प्रख्यात है, यहाँ हर वर्ष लाखों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं।
यह स्थान उत्तराखंड,पौड़ी जनपद के अंतर्गत लैन्सडौन डेरियाखाल – रिखणीखाल मार्ग पर स्थित चखुलाखाल गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच एक बेहद ही मनमोहक शांत जगह है। यह स्थान देवदार के घने जंगलो के मध्य में स्थित ताड़केश्वर भगवान का पौराणिक मंदिर मौजूद है।
स्कंद पुराण के केदारखंड में इस स्थान का वर्णन मिलता है
समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस स्थल को भगवान शिव का आरामगाह कहा जाता है। इस मंदिर परिसर में त्रिशुल के आकार के देवदार के वृक्ष हैं जो श्रद्धालुओं की आस्था को और भी ज्यादा मजबूत करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार ताड़कासुर दैत्य का वध करने के बाद भगवान शिव ने इसी जगह पर आकर विश्राम किया। विश्राम के दौरान जब सूर्य की तेज किरणें भगवान शिव के चेहरे पर पड़ीं, तो मां पार्वती ने शिवजी के चारों ओर देवदार के सात वृक्ष लगाए। ये विशाल वृक्ष आज भी ताड़केश्वर धाम के अहाते में मौजूद हैं।
यहां तक पहुंचने के लिए कोटद्वार पौड़ी से चखुलियाखाल तक जीप-टैक्सी जाती रहती हैं। यहां से 5 किमी पैदल दूरी पर ताड़केश्वर धाम है। ये एक ऐसा मंदिर है, जहां हर साल देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां की खूबसूरती बेमिसाल है और इसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। खासतौर पर श्रावण मास पर तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
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