हिन्दू धर्म के अनुसार सारी सृष्टि त्रिदेव यानी ब्रह्मा,विष्णु और महेश से ही है। भगवान् ब्रह्मा अगर सृष्टि के रचयिता हैं तो भगवान विष्णु समस्त संसार के पालनकर्ता हैं और महेश यानि भगवान शिव को संहारक के रूप में देखा जाता हैं।
जब-जब इस संसार में पाप बढ़ता हैं सभी जगह नकारात्मकता बढ़ती हैं उस वक़्त बुराईयों के नाश के लिए स्वयं भगवान शंकर आते हैं। भगवान शंकर को यूँ तो भोलेनाथ कहा जाता हैं, लेकिन भगवान शिव का क्रोध हर किसी को ज्ञात हैं। यदि भोलेनाथ किसी बात से नाराज़ हो जाये तो उनके क्रोध को शांत कराना लगभग असंभव कार्य होता हैं परन्तु भक्तों द्वारा की गयी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् शिव जल्दी शांत भी हो जाते हैं। यही वजह हैं कि भगवान शंकर को उनके भक्त भोलेनाथ के नाम से भी पुकारते हैं।
इस विश्व ने भगवान शंकर के अनेक प्रसिद्ध मंदिर है उन सभी मंदिरो में पशुपतिनाथ मंदिर मंदिर का सर्वोच्च स्थान है। पशुपतिनाथ (Pashupatinath) मंदिर काठमांडू (नेपाल) की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में देवपाटन गावँ में बगमती नदी के तट स्थित है। भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित यह मंदिर नेपाल में भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है। मंदिर दुनिया भर के हिन्दू तीर्थ यात्रियों के अलावा गैर हिन्दू पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी रहा है। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल है। इस मंदिर में भारतीय पुजारियों की काफी संख्या है। सदियों से यह परंपरा रही है कि मंदिर में चार पुजारी और एक मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं। मान्यता के अनुसार मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के राजाओं ने तीसरी सदी ईसा पूर्व करवाया था। पशुपतिनाथ (Pashupatinath)मंदिर का मुख्य परिसर आखिरी बार 17वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया था, जो दीमक के कारण जगह-जगह से नष्ट हो गया था। मूल मंदिर तो न जाने कितनी बार नष्ट हुआ, लेकिन मंदिर को नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में वर्तमान स्वरूप दिया।
भारतीय ग्रंथों के अनुसार पशुपतिनाथ के विषय में मान्यता है कि महाभारत युद्घ में विजय के बाद पांण्डव अपने गुरूजनों और सगे संबंधियों को मारने के बाद दुखी थे और अपने पापों से मुक्ती चाहते थे। वे भगवान श्री कृष्ण के पास गए और अपने पापों से मुक्ति का उपाय पूछा । तब भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि भगवान शिव ही आपको पापों से मुक्त कर सकते हैं।
पशुपतिनाथ मंदिर की कथा – Katha Of Pashupatinath Temple
पशुपतिनाथ मंदिर के बारे में अनेको कथा प्रचलित है। हिन्दू ग्रंथों के अनुसार पशुपतिनाथ के विषय में मान्यता है कि महाभारत युद्घ में विजय के बाद पांण्डव अपने गुरूजनों और सगे संबंधियों को मारने के बाद दुखी थे और अपने पापों से मुक्ती चाहते थे। वे भगवान श्री कृष्ण के पास गए और अपने पापों से मुक्ति का उपाय पूछा । तब भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि भगवान शिव ही आपको पापों से मुक्त कर सकते हैं। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पांण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े। पांण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान शिव जी पांण्डवों से नाराज थे । गुप्त काशी( उतराखंड,भारत) में पांण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थित है।
लेकिन पांण्डव भगवान शिव को हर हाल में मनाना चाहते थे। शिव जी का पीछा करते हुए पांण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पांण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे बैलों के झुंण्ड में शामिल हो गये। पांण्डवों ने बैलों के झुंण्ड में भी शिव जी को पहचान लिया तो शिव जी बैल के रूप में ही धरती में समाने लगे। भगवान शिव को बैल के रूप में धरती में समाता देख भीम ने कमर से कसकर पकड़ लिया। पांण्डवों की सच्ची श्रद्धा को देख भगवान शिव प्रकट हुए और पांण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया। इस बीच बैल बने शिव जी का सिर काठमांडू स्थित पशुतिनाथ में पहुंच गया। इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। केदरनाथ में बैल के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है जबकि पशुपतिनाथ में बैल के सिर के रूप में शिवलिंग को पूजा जाता है।
स्थानीय ग्रंथों के अनुसार, विशेष तौर पर नेपाल महात्म्य और हिमवतखंड के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए, जो बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में है। भगवान शिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गए। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहते हैं इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए ।
पशुपतिनाथ (Pashupatinath) लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहला मुख ‘अघोर’ मुख है, जो दक्षिण की ओर है। पूर्व मुख को ‘तत्पुरुष’ कहते हैं। उत्तर मुख ‘अर्धनारीश्वर’ रूप है। पश्चिमी मुख को ‘सद्योजात’ कहा जाता है। ऊपरी भाग ‘ईशान’ मुख के नाम से पुकारा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।
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पशुपतिनाथ मंदिर का महत्व- Importance of Pashupatinath Temple
मान्यता है कि जो व्यक्ति पशुपति नाथ के दर्शन करता है उसका जन्म कभी भी पशु योनी में नहीं होता है। मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय भक्तों को मंदिर के बाहर स्थित नंदी के दर्शन पहले नहीं करने चाहिए। जो व्यक्ति पहले नंदी के दर्शन करता है बाद में शिवलिंग का दर्शन करता है उसे अगले जन्म पशु योनी मिलती है।
पशुपतिनाथ मंदिर में दैनिक अनुष्ठान – Daily Ritual at Pashupatinath Temple
पशुपतिनाथ मंदिर के दैनिक अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
- सुबह 4:00 बजे : पश्चिम द्वार पर्यटकों के लिए खुलता है।
- सुबह 8:30 बजे : पुजारियों के आगमन के बाद भगवान की मूर्तियों को नहलाया और साफ किया जाता है, दिन के लिए कपड़े और गहने बदल दिए जाते हैं।
- सुबह 9:30 बजे : बाल भोग या नाश्ता प्रभु को चढ़ाया जाता है।
- सुबह 10:00 बजे : फिर पूजा करने के इच्छुक लोगों का स्वागत किया जाता है। इसे फार्मायशी पूजा भी कहा जाता है, जिसके तहत लोग पुजारी को अपने निर्दिष्ट कारणों के लिए एक विशेष पूजा करने के लिए कहते हैं। पूजा दोपहर 1:45 बजे तक जारी रहती है।
- 1:50 बजे : मुख्य पशुपति मंदिर में भगवान को दोपहर का भोजन चढ़ाया जाता है।
- दोपहर 2:00 बजे : सुबह की प्रार्थना समाप्त।
- 5:15 बजे : मुख्य पशुपति मंदिर में संध्या आरती शुरू।
- शाम 6:00 बजे : यहां बागमती किनारे होने वाली गंगा आरती आकर्षण का केंद्र है। यह आरती ज्यादातर आप शनिवार, सोमवार और विशेष अवसरों पर ही देख सकते हैं। गंगा आरती, रावण द्वारा लिखित शिव के तांडव भजन के साथ, गंगा आरती शाम को की जाती है।
- शाम 7:00 बजे: दरवाजा बंद हो जाता है।
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