हम सब जानते हैं कि गणेश जी मूषक पर विराजमान होते हैं। उनका वाहन ‘डिंक’ नामक मूषक है। गणेश जी की विशाल शारीरिक संरचना के समक्ष मूषक आकार में अत्यंत छोटा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि गणेश जी ने इतने छोटे से जीव को ही अपना वाहन क्यों चुना?
इस प्रश्न का उत्तर दो पौराणिक कथाओं में मिलता है। आइये जानते हैं मूषक के गणेश जी का वाहन बनने के पीछे की कथा :
प्रथम कथा
गणेश पुराण के अनुसार द्वापर युग में एक दिन देवराज इंद्र के दरबार में गहन चर्चा चल रही थी। दरबार में उपस्थित समस्त देवगण चर्चा में लीन थे किंतु क्रौंच नामक गंधर्व अप्सराओं के साथ हँसी-ठिठोली कर रहा था। जब देवराज इंद्र की दृष्टि क्रौंच पर पड़ी, तो वे क्रोधित हो उठे और उसकी चंचलता भरी हरकत के कारण उसे मूषक बन जाने का श्राप दे दिया।
क्रौंच इंद्र के श्राप के कारण मूषक बना और स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक में पराशर ऋषि के आश्रम में आ गिरा। स्वभाव से चंचल मूषक रूपी क्रौंच ने ऋषि आश्रम में उत्पात मचा दिया। उसने मिट्टी के समस्त पात्र तोड़ डाले, उसमें रखे अन्न का भक्षण कर लिया, ऋषियों के वस्त्र कुतर दिए और आश्रम की सुंदर वाटिका भी उजाड़ दी।
मूषक के इस उत्पात से पराशर ऋषि चिंतित हो गए और उससे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना हेतु गणेश जी की शरण में पहुँचे।
गणेश जी ने पराशर ऋषि की प्रार्थना स्वीकार कर ली और मूषक रूपी क्रौंच को पकड़ने के लिए एक तेजस्वी पाश फेंका। पाश के बंधन से बचने के लिए क्रौंच पाताल लोक भाग गया। किंतु पाश ने पाताल लोक तक उसका पीछा किया और उसे बांधकर गणेश जी के समक्ष ला खड़ा किया।
साक्षात गणेश जी को अपन समक्ष देख मूषक रूपी क्रौंच भयभीत हो गया और वो भगवान गणेश जी से अपने प्राणों की भिक्षा मांगने लगा। तब गणेश जी बोले, “तूने पराशर ऋषि के आश्रम में बहुत उत्पात मचाया है, और तेरा ये क्र्त क्षमायोग्य तो नहीं है। किंतु शरणागत की रक्षा मेरा धर्म है। तुम्हें जो वरदान चाहिए मांग लो।”
गणेश जी की इस बात पर क्रौंच का अहंकार जाग उठा और वह बोला, “मुझे किसी वरदान की आवश्यकता नहीं है। आप चाहे तो मुझसे कोई वर मांग लें।”
अहंकारी क्रौंच के इस कथन पर गणेश जी मंद-मंद मुस्कुराये और बोले, “ऐसा ही सही। मैं तुझसे अपना वाहन बन जाने का वर मांगता हूँ।”
क्रौंच के पास कोई अन्य विकल्प न था। अपने कथन अनुसार वह गणेश जी का वाहन बन गया। गणेश जी जैसे ही मूषक रुपी क्रौंच पर सवार हुए, उनके भारी भरकम शरीर से वह दबने लगा और उसके प्राणों पर बन आई। उसका सारा अहंकार चूर-चूर हो गया। उसने गणेश जी से क्षमा माँगी और याचना की कि वे अपना वजन वहन करने योग्य कर लें। गणेश जी ने वैसा ही किया।
उस दिन से मूषक गणेश जी का वाहन बन गया। गणेश जी के वाहन के रूप में उसका नाम ‘डिंक’ पड़ा। गणेश जी की मूषक पर सवारी स्वार्थ पर विजय का संकेत है।
दूसरी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार गजमुखासुर नामक दैत्य ने देव लोक में उत्पात मचा रखा था। समस्त देवता उससे तंग थे। एक दिन सभी देवगण एकत्रित होकर गणेश जी की शरण में पहुँचे और उनसे गजमुखासुर दैत्य से मुक्ति दिलाने हेतु प्रार्थना करने लगे।
देवताओं की रक्षा के लिए गणेश जी ने गजमुखासुर से युद्ध किया। इस युद्ध में गणेश जी का एक दांत टूट गया। इसी दांत से गणेश जी ने गजमुखासुर पर प्रहार किया, जिससे बचने के लिए गजमुखासुर में मूषक का रूप धारण किया और युद्धस्थल से भाग खड़ा हुआ। किंतु गणेश जी ने उसे पकड़ लिया।
तब गजमुखासुर गणेश जी से क्षमायाचना करते हुए अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। गणेश जी ने उसे क्षमा कर अपना वाहन बना लिया।
**(इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
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