हर साल बहने अपने भाइयों को विधी अनुसार रक्षाबंधन के दिन राखी बाँधती है और अपनी रक्षा का वचन माँगती है, लेकिन क्या आप जानते हैं की ये परम्परा कब से और क्यों शुरू हुई और श्रावण की पूर्णिमा से इस का क्या सम्बंध है? चलिए जानते हैं रक्षाबंधन मनाने का कारण।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार:
दैत्य कुल के राजा बलि ने देवताओं के प्रमुख इंद्र का आसन पाने के लिए सौ यज्ञ करने का संकल्प लिया। राजा बलि जब सौवां यज्ञ कर रहे थे तबइंद्र सहित सभी देवताओं की प्रार्थना पर स्वयं भगवान विष्णु ही वामन का रूप धर कर बलि की यज्ञशाला में आए। भगवान वामन ने राजा बलि सेअपने लिए तीन पग भूमि मांगी। दैत्यगुरू शुक्राचार्य के मना करने पर भी बलि ने भगवान वामन को तीन पग भूमि दे दी।
वामन ने अपने शरीर को बढ़ा दो पगों में ही पृथ्वी व स्वर्ग को नाप लिया तथा तीसरा पग दैत्यराज बलि के मस्तक पर रखा। बलि की भक्ति से प्रसन्नहोकर भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने वरदान में भगवान विष्णु को अपने पाताललोक का द्वारपाल होना ही मांग लिया।
इस कारण भगवान विष्णु वैकुंठलोक छोड़कर पाताललोक में राजा बलि के द्वाररक्षक हो गए। भगवती लक्ष्मी अपने पति विष्णु को खोजने लगीं और खोजते हुए पाताललोक पहुंचीं तथा भगवान विष्णु को अपने साथ चलने के लिए कहने लगीं।
भगवान विष्णु ने बलि को दिए वरदान के अनुसार जाने से मना कर दिया। तब भगवती लक्ष्मी ने दैत्यराज बलि को अपना भाई बनाते हुए रक्षासूत्र बांधकर अपने पति को मांग लिया।
उस दिन श्रावणी पूर्णिमा का ही दिन था। बलि ने अपनी बहन लक्ष्मी की इच्छा का सम्मान करते हुए भगवान विष्णु को ससम्मान उनके साथ भेज दिया। तब से आज तक रक्षाबंधन का पवित्र पर्व चला आ रहा है।
आज अपने पुरोहित से रक्षासूत्र बंधवाना चाहिए। यदि भद्रा हो तो उसे टालकर सविधि ऋषियों का पूजन करने के बाद ब्राह्मण से पुरूषों को दाएं हाथ और महिलाओं को बाएं हाथ पर रक्षासूत्र बंधवाना चाहिए।
रक्षासूत्र बांधते समय इस मंत्र का उच्चारण अनिवार्य रूप से करना चाहिए-
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
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