सोमनाथ ( Somnath ji) ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु विश्व का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में वेरावल बंदरगाह में स्थित है। इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्र देव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
सोमनाथ (Somnath ji) मंदिर पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि धार्मिक कर्म-कांडों के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहाँ श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इसी कारण इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।
सोमनाथ कथा ( Story of Somnath )
शिव पुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ किया था। चन्द्रमा को पति रूप में पाकर दक्ष कन्यायें अत्यंत प्रसन्न हुईं और चन्द्रमा भी उन्हें पत्नी रूप में पाकर अत्यंत संतुष्ट हुए। सभी पत्नियों में चन्द्रमा को रोहिणी विशेष प्रिय थी। इससे दूसरी स्त्रियों को बड़ा दुःख हुआ। वे सब अपने पिता दक्ष की पास गयीं और उनसे अपना दुःख सुनाया। उनकी बात सुनकर दक्ष भी दुखी हो गए और चन्द्रमा के पास जाकर उनसे प्रार्थना करते हुए बोले – “हे कलानिधे ! तुम निर्मल कुल में उत्पन्न हुए हो। तुम्हारी जितनी भी पत्नियाँ हैं उन सबके प्रति तुम्हारे मन में अलग अलग भाव क्यों हैं ? तुम किसी को अधिक और किसी को कम प्रेम क्यों करते हो ? अब तक जो किया सो किया अब आगे फिर कभी ऐसा भेदभावपूर्ण बर्ताव तुम्हें नहीं करना चाहिए। “ अपने दामाद चन्द्रमा से ऐसी प्रार्थना करके प्रजापति दक्ष घर को चले गए। उन्हें पूरा विश्वास था कि अब आगे फिर ऐसा नहीं होगा। पर चन्द्रमा रोहिणी में इतने आसक्त हो गए थे कि दूसरी किसी पत्नी का कभी आदर नहीं करते थे।
प्रजापति दक्ष अपनी कन्याओं से बार-बार इस शिकायत को सुनकर बहुत दुखी हुए और चन्द्रमा के पास जाकर बोले – “हे चन्द्रमा ! सुनो, मैं पहले अनेक बार तुमसे प्रार्थना कर चुका हूँ। फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी। इसलिए आज शाप देता हूँ कि तुम्हें क्षय का रोग हो जाये। “ दक्ष के इतना कहते ही क्षणभर में ही चन्द्रमा क्षय रोग से ग्रस्त हो गए। उनके क्षीण होते ही चारों ओर हाहाकार मच गया। चन्द्रमा ने इन्द्र आदि सभी देवताओं और ऋषियों को अपने साथ हुए घटना की सूचना दी। तब इन्द्र सहित सभी देवता और ऋषिगण ब्रह्मा जी की शरण में गए।
उनकी बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा – ” देवताओं ! जो हो गया अब वह निश्चय ही पलट नहीं सकता। अतः उसके निवारण के लिए मैं तुम्हें एक उत्तम उपाय बताता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो। आप सभी देवता प्रभास नामक शुभ क्षेत्र में जाएँ और वहाँ शिवलिंग की स्थापना कर नित्य तपस्या करें और मृत्युंजय मंत्र का विधिपूर्वक अनुष्ठान करते हुए भगवान शिव की आराधना करें। इससे प्रसन्न होकर शिव उन्हें क्षयरहित कर देंगे। “ तब देवताओं तथा ऋषियों के कहने से ब्रह्मा जी की आज्ञा के अनुसार चन्द्रमा ने वहाँ 6 महीने तक निरंतर तपस्या की, मृत्युंजय मंत्र से भगवान भोलेनाथ का पूजन किया।
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दस करोड़ मंत्र का जप और मृत्युंजय का ध्यान करते हुए चन्द्रमा वहाँ स्थिरचित्त होकर लगातार खड़े रहे। उन्हें तपस्या करते देख भक्तवत्सल भगवान शंकर प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हो गए और चन्द्रमा से बोले –”चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो, मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। तुम्हारे मन में जो भी इच्छा हो वह वर माँगो। तुम्हें सभी उत्तम वर प्रदान करूँगा।“
चन्द्रमा बोले – “ हे देवेश्वर! यदि आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं तो मेरे लिए क्या असाध्य हो सकता है। तथापि प्रभु, आप मेरे शरीर के इस क्षयरोग का निवारण कीजिये। मुझसे जाने अनजाने जो भी अपराध हुए हों उसे क्षमा कीजिये। “
शिवजी ने कहा –“चन्द्रदेव! एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण हो और दूसरे पक्ष में फिर वह निरंतर बढ़ती रहे।“ इसके बाद चन्द्रमा ने भक्तिभाव से भगवान शंकर की स्तुति की। देवताओं पर प्रसन्न हो उस क्षेत्र के माहात्म्य को बढ़ाने तथा चन्द्रमा के यश का विस्तार करने के लिए भगवान शंकर उन्हीं के नाम पर वहाँ सोमेश्वर कहलाये और सोमनाथ के नाम से संसार में विख्यात हुए।
सोमनाथ (Somnath ji) का पूजन करने से उपासक के क्षय तथा कोढ़ आदि रोगों का नाश हो जाता है। उसी स्थान पर सभी देवताओं ने सोमकुण्ड या चन्द्रकुण्ड की भी स्थापना की। जिसमें शिव और ब्रह्मा का सदा निवास माना जाता है। सोमकुण्ड इस भूतल पर पापनाशन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। जो मनुष्य उसमें स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। क्षय आदि जो असाध्य रोग होते हैं, वे सब उस कुंड में 6 मास तक स्नान करने मात्र से नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य जिस किसी भी फल के उद्देश्य से इस उत्तम तीर्थ का सेवन करता है उस फल को अवश्य पाता है, इसमें कोई संशय नहीं है।
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