मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं। स्कंदपुराण में श्री शैल काण्ड नाम का अध्याय है। इसमें उपरोक्त मंदिर का वर्णन है। इससे इस मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जहां पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते हैं।
तमिल संतों ने भी प्राचीन काल से ही इसकी स्तुति गायी है। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की, तब उन्होंने शिवनंद लहरी की रचना की थी। श्री शैलम का सन्दर्भ प्राचीन हिन्दू पुराणों और ग्रंथ महाभारत में भी आता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा ( Story of Mallikarjuna Jyotirlinga)
एक बार विवाह को लेकर कार्तिकेय और अग्रपूज्य गणेश जी में विवाद हो गया। तब भगवान शिव और पार्वती माता ने पहले गणेश जी का विवाह करने का निर्णय लिया। जिससे कुमार कार्तिकेय माता पिता से रुष्ट होकर क्रौञ्च पर्वत पर चले गए और शिव पार्वती के अनुरोध करने पर भी वापस नहीं लौटे तथा वहाँ से भी 12 कोस दूर चले गए। तब शिव पार्वती ज्योतिर्मय स्वरुप धारण करके वहीँ प्रतिष्ठित हो गए। वे दोनों पुत्र स्नेह के कारण विशेष तिथियों में अपने पुत्र कुमार को देखने के लिए उनके पास जाया करते हैं।
अमावस्या के दिन भगवान भोलेनाथ स्वयं वहाँ जाते हैं और पूर्णिमा के दिन पार्वती जी वहाँ जाती हैं। उसी दिन से भगवान शिव का मल्लिकार्जुन नामक शिवलिंग संसार में प्रसिद्ध हुआ। मल्लिका का अर्थ पार्वती है और अर्जुन भगवान शिव का ही एक नाम है। इस ज्योतिर्लिंग का जो भी दर्शन पूजन करता है वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और मनोवांछित फल पाता है।
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