ज्योतिष शास्त्र में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन में जब धन्वन्तरि अमृत को बचाने के लिए कलश लेकर भागे तब अमृत की कुछ बूंदें छलक कर पृथ्वी पर चार स्थलों पर गिरी जहाँ आज कुम्भ का आयोजन किया जाता है। वे स्थल हैं प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। हिन्दू धर्म ग्रंथो में मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya) का वर्णन कुम्भ के सन्दर्भ में मिलता और इसे यह अत्यंत ही शुभ और फलदायी माना गया है। इस दिन मौन रहकर गंगा स्नान करने को कहा गया है जिससे गंगास्नान कई गुणा अधिक फल देता है। यदि ये तिथि सोमवार को पड़े तो इसका महत्त्व बहुत ही बढ़ जाता है और अगर उस समय कुम्भ का ही आयोजन हो रहा हो तब तो इस संयोग में मौनी अमावस्या के दिन गंगास्नान का मतलब एक प्रकार से अमृत में नहाने के समान होता है। सौभाग्य से इस वर्ष ( 2021) ऐसा ही संयोग पड़ रहा है जब मौनी अमावस्या के दिन हरिद्वार में कुम्भ चल रहा है।
मौनी अमावस्या का महत्व (Mauni Amavasya Ka Mahatva)
मौनी अमावस्या के दिन स्नान का अत्यधिक महत्त्व है। अगर संभव हो तो गंगास्नान अवश्य करना चाहिए। अगर गंगा तक जाना संभव नहीं हो तो साधारण जल में गंगाजल मिला कर स्नान करना चाहिए। मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने का विशेष महत्त्व है। ये एक मिनट, एक घंटे या पूरे दिन – आपकी सुविधा के अनुसार कितने भी समय तक के लिए रखा जा सकता है। और अगर यदि किसी के लिये मौन रहना संभव न हो तो वह अपने विचारों में किसी भी प्रकार की मलिनता न आने दे, किसी के प्रति कोई कटुवचन न निकले तो भी मौनी अमावस्या का व्रत उसके लिये सफल होता है। कहा यह भी जाता है कि इस एक दिन समस्त देवतागण गंगा में प्रवास करते हैं इसीलिए इस दिन गंगास्नान का महत्त्व अत्यधिक होता है। और मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की मौनी अमावस्या कि रात्रि को बुरी आत्मायें सक्रिय हो जाती है इसीलिए इस दिन रात्रि को श्मशान के नजदीक नहीं जाना चाहिए।
मौनी अमावस्या व्रत कथा ( Story of Mauni Amavasya vrt)
पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी नामक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम देवस्वामी तथा उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक गुणवती पुत्री थी। ब्राह्मण के सातों पुत्रों का विवाह हो चुका था और वह अपनी पुत्री के विवाह हेतु योग्य वर की तलाश कर रहा था। उसी समय एक विद्वान पंडित ने उसकी कुंडली देखकर बताया कि ये कन्या विवाह होते ही विधवा हो जाएगी। तब ब्राह्मण ने विद्वान पंडित से इसका निवारण पूछा तो उस पंडित ने बताया कि सोमा, जो एक धोबिन है जो सिंहल द्वीप में रहती है, उसकी पूजा करने से इसका वैधव्य दोष समाप्त हो जाएगा। इसीलिए उसका गुणवती के विवाह में रहना अत्यंत आवश्यक है। तब देवस्वामी ने अपने छोटे लड़के को अपनी बहन को साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने को कहा।
अपनी बहन को लेकर उसका भाई समुद्र तट पर पहुँचा जिसके पार सिंहल द्वीप था। लेकिन उस सागर को कैसे पार किया जाये? ये सोचकर वो हताश होकर अपनी बहन के साथ एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस वृक्ष पर एक विशाल गिद्ध रहता था जो जब अपने बच्चों के लिए खाना लेकर आया तो उनके बच्चों ने भोजन करने से मना कर दिया क्यूंकि उनके घर के नीचे दो प्राणी भूखे प्यासे बैठे थे। तब उस गिद्ध ने उन्हें भोजन दिया और स्वयं अपने ऊपर बिठा कर सिंहल द्वीप पहुँचा दिया।
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वहाँ वे लोगों से पूछते-पूछते सोम के घर पहुँचे। सोमा अपने पति, पुत्र, बहु और पोते के साथ रहती थी। वहाँ दोनों भाई-बहन ने सोमा की बड़ी सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर सोमा उनके साथ जाने को तैयार हो गयी। वे सोमा को लेकर वापस आये और उसकी उपस्थिति में गुणवती का विवाह हुआ। विवाह होते ही उसका पति मर गया पर सोमा ने अपने सारे संचित पुण्य के प्रभाव से उसके पति को जीवित कर दिया। फिर सबने उसका बहुत सत्कार कर धन-धान्य के साथ विदा किया। उधर उसका पुण्य समाप्त हो जाने से उसके पूरे परिवार की मृत्यु हो गयी। जब वो वापस पहुँची तो ये दृश्य देख कर रोने लगी। उस दिन मौनी अमावस्या थी। उसने अपना धैर्य नहीं खोया और वही पर लगे पीपल के पेड़ की १०८ परिक्रमाएं कर भगवान शिव और श्रीहरि की पूजा की। उनकी कृपा और सोमा की भक्ति के कारण उनके परिवार के सदस्य जीवित हो गए। तब से ही मौनी अमावस्या का व्रत रखने का विधान चल पड़ा।
मौनी अमावस्या व्रत विधि (Mauni Amavasya Puja Vidhi)
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए और और जहां पर गंगा नदी हो तो उस में स्नान करें।
- यदि ऐसा संभव ने हो सके तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें।
- नहाने के बाद मौन रहकर ही भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करें। कहते हैं हरि ही हर हैं और हर ही हरि।
- इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापति करें और भगवान विष्णु का पीले चंदन का तिलक करें।
- इसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूलों की माला पहनाएं और भगवान का तिलक करें।
- तिलक के बाद एक माला लेकर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
- इसके बाद भगवान विष्णु को पीली मिठाई का भोग लगाएं और धूप दीप से आरती उतारें और पूरे दिन मौन रहें।
- पूजा के बाद किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं और उन्हें दान में वस्त्र और अन्न अवश्य दें।
- इसके बाद गाय को भी भोजन अवश्य कराएं और उनका आर्शीवाद लें।
मौनी अमावस्या पर पितृ तर्पण का महत्व (Mauni Amavasya Pitru Tarpan Impotance)
मौनी अमावस्या के दिन पितृ तर्पण का भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन गंगा जी में स्नान करके पितरों का तर्पण किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन पितरों का तर्पण करने से उन्हें मुक्ति मिलती है और जिन लोगों की मृत्यु अकास्मिक होती है उनका तर्पण करने से उन्हें भी शांति प्राप्त होती है। जिन पर पितृ दोष है अगर वो इस दिन पितरों का तर्पण करते हैं तो उन्हें पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन पितरों का तर्पण अवश्य करें।
मौनी अमावस्या 2021 तिथि (Mauni Amavasya 2021 Tithi)
दिनांक : 11 फरवरी 2021
वार : गुरुवार (बृहस्पतिवार)
अमावस्या तिथि प्रारम्भ : 11 फरवरी 2021 को 01:08 ए एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त : 12 फरवरी 2021 को 12:35 ए एम बजे
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