श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग(Trimbakeshwar Jyotirlinga) गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है। भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा ( Story of Trimbakeshwar Jyotirlinga)
पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वकाल में गौतम नाम के एक विख्यात ऋषि हुए। उनकी पत्नी का नाम अहिल्या था। दक्षिण दिशा में ब्रह्मगिरि नामक एक पर्वत है वहीं रह कर उन्होंने दीर्घकाल तक तपस्या की थी। एक समय वहाँ भयंकर अकाल पड़ा। पूरी धरती सुख चुकी थी और एक गीला पत्ता भी नहीं दिखाई पड़ता था। उस समय वहाँ रहने वाले मनुष्य और वन्य जीव उस क्षेत्र को त्याग कर दूसरी जगह चले गए। तब गौतम ऋषि ने छह महीने तक तप करके वरुण देवता को प्रसन्न किया।
गौतम ऋषि ने वरुणदेव से वृष्टि की प्रार्थना की। इस पर वरुण देवता ने कहा – ” देवताओं के विधान के विरुद्ध वृष्टि न करके मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार तुम्हें सदा अक्षय रहने वाला जल देता हूँ। तुम एक गड्ढा तैयार करो। “ उनके ऐसा कहने पर गौतम ऋषि ने एक छोटा सा गड्ढा खोदा और वरुणदेव ने उसे दिव्य जल से भर दिया और कहा – ” महामुने ! कभी क्षीण न होने वाला यह जल तुम्हारे लिए तीर्थरूप होगा और पृथ्वी पर तुम्हारे ही नाम से इसकी ख्याति होगी।“ ऐसा कहकर महर्षि गौतम से प्रशंसित होकर वरुणदेव अंतर्ध्यान हो गए। गौतम ऋषि वहाँ उस परम दुर्लभ जल को पाकर पहले की तरह ही विधिपूर्वक नित्य पूजन आदि अन्य कर्म करने लगे। उन्होंने वहाँ धान, जौ आदि अनेक प्रकार के अन्न और तरह तरह के फल-फूल के वृक्ष लगा दिए। देखते देखते वे सब लहलहा उठे और वह क्षेत्र अत्यंत सुन्दर हो गया। यह समाचार सुनकर सहस्त्रों ऋषि-मुनि सपरिवार वहाँ आकर रहने लगे। इसके साथ ही अनेक प्रकार के पशु-पक्षी और वन्य जीव भी वहाँ आ गए। वरुणदेव के दिए अक्षय जल के प्रभाव से उस वन में सब ओर आनंद छा गया।
एक बार वहाँ गौतम मुनि के आश्रम में आकर बसे हुए ब्राह्मणों की स्त्रियाँ उस पवित्र जल के विषय पर अहिल्या से नाराज हो गयीं। उन्होंने अपने पतियों को उकसाया। इसके बाद उन ब्राह्मणों ने गौतम मुनि का अनिष्ट करने के लिए गणेश जी की आराधना की। भक्त पराधीन गणेश जी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। तब उन ब्राह्मणों ने गणेश जी से कहा – ” भगवन! यदि आप हमें वर देना चाहते हैं तो ऐसा कोई उपाय कीजिये जिससे गौतम मुनि को यह क्षेत्र छोड़ कर जाना पड़े। “
गणेश जी ने कहा – ” ऋषियों ! तुम सब लोग ध्यान से मेरी बात सुनो। इस समय तुम उचित कार्य नहीं कर रहे हो। बिना किसी अपराध के उन पर क्रोध करने से तुम्हारी ही हानि होगी। जिन्होंने पहले उपकार किया हो, उन्हें यदि दुःख दिया जाये तो वह अपने लिए हितकारक नहीं होता। पहले अकाल के कारण जब तुम लोगों को दुःख भोगना पड़ा था, तब महर्षि गौतम ने जल की व्यवस्था करके तुम्हें सुख दिया। परन्तु इस समय तुम सब लोग उन्हें दुःख देना चाहते हो। यह किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। इसलिए तुम लोग कोई दूसरा वर माँगो। “
यद्यपि गणेश भगवान ने ब्राह्मणों को हितकर उपदेश दिया पर उन्होंने गणेश जी की बात नहीं मानी। तब भक्तों के अधीन होने के कारण गणेश जी ने उन ब्राह्मणों से कहा – ” तुम लोगों ने जिस कार्य के लिए प्रार्थना की है, उसे मैं अवश्य करूँगा। आगे जो होना होगा, वह होकर रहेगा।“ ऐसा कह कर वे अंतर्ध्यान हो गए। कुछ दिनों के बाद गणेश जी एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके गौतम ऋषि के धान और जौ के खेतों के पास पहुँचे। वह गौ अपनी दुर्बलता के कारण काँपती हुई उन खेतों में जाकर चरने लगी। उसी समय दैववश गौतम जी वहाँ आ गए। अपने दयालु स्वभाव के कारण वे मुट्ठी भर तिनके लेकर उन्हीं से उस गाय को हाँकने लगे। उन तिनकों का स्पर्श होते ही वह गौ पृथ्वी पर गिर पड़ी और उसी क्षण मर गयी।
वे द्वेषी ब्राह्मण और उनकी दुष्ट स्त्रियाँ वहीं छिप कर सब कुछ देख रहे थे। उस गाय के मरते ही वे सब वहाँ पहुँच गए और कहने लगे – ” हे भगवान ! गौतम ऋषि ने यह क्या कर डाला ? एक ब्राह्मण होकर इन्होनें गौ हत्या का पाप किया। ” गौतम मुनि आश्चर्यचकित होकर अहिल्या को बुलाकर कहने लगे – ” देवी ! यह क्या हुआ, कैसे हुआ, कुछ पता नहीं। लगता है परमेश्वर मुझ पर कुपित हो गए हैं। अब मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ ? मुझे गौ हत्या का पाप लग गया। “
इधर वे ब्राह्मण और उनकी पत्नियाँ विभिन्न प्रकार के दुर्वचनों के द्वारा गौतम ऋषि और अहिल्या को पीड़ित करने लगे। ब्राह्मण बोले – ” अब तुम्हें अपना मुँह नहीं दिखाना चाहिए। यहाँ से जाओ। जब तक तुम इस स्थान में रहोगे तब तक अग्निदेव और पितर हमारे पूजा तर्पण को स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए तुम जल्दी से जल्दी परिवार सहित यहाँ से किसी अन्य स्थान पर चले जाओ। “
यह सुनकर गौतम ऋषि तत्काल सपरिवार उस स्थान से निकल गए और उन सबकी आज्ञा से एक कोस दूर जाकर अपने लिए आश्रम बनाया। उन ब्राह्मणों ने वहाँ जाकर गौतम ऋषि से कहा – ” जब तक तुम गौ हत्या का प्रायश्चित नहीं कर लेते तब तक तुम्हें यज्ञ आदि किसी भी वैदिक अनुष्ठान का अधिकार नहीं रह गया है।“ यह सुनकर गौतम मुनि ने उनसे प्रायश्चित का मार्ग पुछा।
तब उन ब्राह्मणों ने कहा – ” गौतम ! तुम एक करोड़ पार्थिव लिंग बनाकर महादेव की आराधना करो। फिर गंगा में स्नान करके ब्रह्मगिरि पर्वत की ग्यारह बार परिक्रमा करने से तुम्हारा उद्धार होगा। ” गौतम मुनि ने उन ब्राह्मणों की बात मान ली और पार्थिव लिंगों का निर्माण करके शिव आराधना करने लगे। इस प्रकार बहुत समय बीत जाने पर गौतम ऋषि के आराधना से संतुष्ट होकर भगवान शिव वहाँ माता पार्वती और अपने पार्षद गणों के साथ प्रकट हो गए और गौतम मुनि से कहा – ” महामुने! मैं तुम्हारी उत्तम भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम कोई वर माँगो।“ उस समय शिव जी के सुन्दर रूप को देख कर आनंदित हुए गौतम ऋषि ने भक्तिभाव से शंकर जी को प्रणाम करके उनकी स्तुति की, फिर दोनों हाथ जोड़कर बोले – ” देव ! मुझे निष्पाप कर दीजिये। “
शिव जी ने कहा – ” मुने ! तुम धन्य हो और सदा ही निष्पाप हो। इन दुष्टों ने तुम्हारे साथ छल किया है। जिन दुरात्माओं ने तुम पर अत्याचार किया है, वे ही पापी और दुराचारी हैं। वे सब के सब कृतघ्न हैं। उनका कभी उद्धार नहीं हो सकता।“ महादेव जी की बात सुनकर महर्षि गौतम बड़े विस्मित हुए और भक्तिपूर्वक प्रणाम करके कहा –” महेश्वर ! उन ऋषियों ने तो मेरा बहुत उपकार किया है। यदि उन्होंने मेरे साथ ऐसा व्यवहार न किया होता तो मुझे आपका दर्शन कैसे प्राप्त होता ? “ महर्षि गौतम की बात सुनकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और कहा – ” विप्रवर ! तुम धन्य हो और सभी ऋषियों में श्रेष्ठ हो। मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। तुम मुझसे कोई उत्तम वर माँगो। “
गौतम बोले – ” नाथ ! यदि आप प्रसन्न हैं तो लोक कल्याण के लिए मुझे गंगा प्रदान कीजिये।“ तब शिव जी की आज्ञा से गंगा एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण करके वहाँ खड़ी हो गयी। गौतम ऋषि ने गंगा माता को प्रणाम करके कहा – ” गंगे ! तुम सम्पूर्ण जगत को पवित्र करने वाली हो। इसलिए नरक में गिरते हुए मुझ गौतम को पवित्र करो।“ इस पर शिव जी ने गंगा से कहा – ” देवी ! तुम गौतम मुनि को पवित्र करो और तुरंत वापस न जाकर वैवस्वत मनु के अट्ठाईसवें कलियुग तक यहीं रहो। “
गंगा ने कहा – ” महेश्वर ! अम्बिका तथा गणों के साथ आप भी यहाँ रहें, तभी मैं यहाँ रहूँगी।“ गंगा जी की बात सुनकर भगवान शिव बोले – ” गंगे ! तुम धन्य हो। तुम्हारे कथनानुसार मैं भी यहाँ रहूँगा। “ इस प्रकार महर्षि गौतम की प्रार्थना पर भगवान शंकर और नदियों में श्रेष्ठ गंगा वहाँ स्थित हो गए। वहाँ की गंगा, गौतमी ( गोदावरी ) नाम से विख्यात हुई और भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर कहलाया।
उस दिन से लेकर जब जब बृहस्पति सिंह राशि में स्थित होते हैं, तब तब सभी तीर्थ और देवतागण गौतमी के तट पर वास करते हैं। वे सब जब तक गौतमी के किनारे रहते हैं, तब तक अपने स्थान पर उनका कोई फल नहीं होता। जब वे अपने स्थान पर लौटते हैं तभी वहाँ इनके सेवन का फल मिलता है। यह त्र्यम्बक नाम से प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गौतमी के तट पर स्थित है और पापों का नाश करने वाला है। जो भक्तिभाव से इस त्र्यम्बक लिंग का दर्शन और पूजन करता है वह समस्त अभीष्टों को प्राप्त करता है।
एक ही साथ विराजमान हैं (त्रिदेव) ब्रह्मा, विष्णु और महेश
त्र्यंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग (Trimbakeshwar Jyotirlinga ) में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही भगवान विराजित हैं। यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। जो यहां की महत्वता को बढ़ाती है। त्र्यबंकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित हैं। जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है। अन्य स्थानों पर विराजमान सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं। यहां मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों का प्रतीक माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग कैसें पहुँचे(How To Reach Trimbakeshwar Jyotirlinga)
अगर आप त्र्यंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग (Trimbakeshwar Jyotirlinga)जाने की योजना बना रहे हैं तो त्र्यंबकेश्वर जाने के लिए आपको पहले नासिक जाना होगा। जो भारत के लगभग हर क्षेत्र से रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। अगर आप हवाई मार्ग से जाने की योजना बना रहे हैं तो आपको मुम्बई से होकर जा सकते हैं। त्र्यंबकेश्वर नासिक से केवल 30 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है। यहां से आपको कभी भी टैक्सी मिल सकती है। हर साल यहां हज़ारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
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