साईं चालीसा ( Sai Chalisa in Hindi )
पहले साईं के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं। कैसे शिरडी साईं आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥
कौन है माता, पिता कौन है, ये न किसी ने भी जाना। कहां जन्म साईं ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना॥
कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान हैं। कोई कहता साईं बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं॥
कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानंद हैं साईं। कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नंदन हैं साईं॥
शंकर समझे भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते। कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साईं की करते॥
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साईं हैं सच्चे भगवान। बड़े दयालु दीनबंधु, कितनों को दिया जीवन दान॥
कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात। किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात॥
आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुंदर। आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर॥
कई दिनों तक भटकता, भिक्षा मांग उसने दर-दर। और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर॥
जैसे-जैसे उमर बढ़ी, बढ़ती ही वैसे गई शान। घर-घर होने लगा नगर में, साईं बाबा का गुणगान॥
दिग दिगंत में लगा गूंजने, फिर तो साईं जी का नाम। दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम॥
बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता मैं हूं निर्धन। दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुख के बंधन॥
कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझको संतान। एवमस्तु तब कहकर साईं, देते थे उसको वरदान॥
स्वयं दुखी बाबा हो जाते, दीन-दुखीजन का लख हाल। अंत:करण श्री साईं का, सागर जैसा रहा विशाल॥
भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत बड़ा धनवान। माल खजाना बेहद उसका, केवल नहीं रही संतान॥
लगा मनाने साईंनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो। झंझा से झंकृत नैया को, तुम्हीं मेरी पार करो॥
कुलदीपक के बिना अंधेरा, छाया हुआ घर में मेरे। इसलिए आया हूं बाबा, होकर शरणागत तेरे॥
कुलदीपक के अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया। आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया॥
दे-दो मुझको पुत्र-दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर। और किसी की आशा न मुझको, सिर्फ भरोसा है तुम पर॥
अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में धर के शीश। तब प्रसन्न होकर बाबा ने, दिया भक्त को यह आशीष॥
‘अल्ला भला करेगा तेरा’ पुत्र जन्म हो तेरे घर। कृपा रहेगी तुझ पर उसकी, और तेरे उस बालक पर॥
अब तक नहीं किसी ने पाया, साईं की कृपा का पार। पुत्र रत्न दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार॥
तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार। सांच को आंच नहीं हैं कोई, सदा झूठ की होती हार॥
मैं हूं सदा सहारे उसके, सदा रहूंगा उसका दास। साईं जैसा प्रभु मिला है, इतनी ही कम है क्या आस॥
मेरा भी दिन था एक ऐसा, मिलती नहीं मुझे रोटी। तन पर कपड़ा दूर रहा था, शेष रही नन्हीं सी लंगोटी॥
सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था। दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नी बरसाता था॥
धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलंब न था। बना भिखारी मैं दुनिया में, दर-दर ठोकर खाता था॥
ऐसे में एक मित्र मिला जो, परम भक्त साईं का था। जंजालों से मुक्त मगर, जगत में वह भी मुझसा था॥
बाबा के दर्शन की खातिर, मिल दोनों ने किया विचार। साईं जैसे दया मूर्ति के, दर्शन को हो गए तैयार॥
पावन शिरडी नगर में जाकर, देख मतवाली मूरति। धन्य जन्म हो गया कि हमने, जब देखी साईं की सूरति॥
जब से किए हैं दर्शन हमने, दुख सारा काफूर हो गया। संकट सारे मिटै और, विपदाओं का अंत हो गया॥
मान और सम्मान मिला, भिक्षा में हमको बाबा से। प्रतिबिंबित हो उठे जगत में, हम साईं की आभा से॥
बाबा ने सन्मान दिया है, मान दिया इस जीवन में। इसका ही संबल ले मैं, हंसता जाऊंगा जीवन में॥
साईं की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हुआ। लगता जगती के कण-कण में, जैसे हो वह भरा हुआ॥
‘काशीराम’ बाबा का भक्त, शिरडी में रहता था। मैं साईं का साईं मेरा, वह दुनिया से कहता था॥
सीकर स्वयं वस्त्र बेचता, ग्राम-नगर बाजारों में। झंकृत उसकी हृदय तंत्री थी, साईं की झंकारों में॥
स्तब्ध निशा थी, थे सोए, रजनी आंचल में चांद सितारे। नहीं सूझता रहा हाथ को हाथ तिमिर के मारे॥
वस्त्र बेचकर लौट रहा था, हाय! हाट से काशी। विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन, आता था एकाकी॥
घेर राह में खड़े हो गए, उसे कुटिल अन्यायी। मारो काटो लूटो इसकी ही, ध्वनि पड़ी सुनाई॥
लूट पीटकर उसे वहां से कुटिल गए चम्पत हो। आघातों में मर्माहत हो, उसने दी संज्ञा खो॥
बहुत देर तक पड़ा रह वह, वहीं उसी हालत में। जाने कब कुछ होश हो उठा, वहीं उसकी पलक में॥
अनजाने ही उसके मुंह से, निकल पड़ा था साईं। जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में, बाबा को पड़ी सुनाई॥
क्षुब्ध हो उठा मानस उनका, बाबा गए विकल हो। लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सन्मुख हो॥
उन्मादी से इधर-उधर तब, बाबा लेगे भटकने। सन्मुख चीजें जो भी आई, उनको लगने पटकने॥
और धधकते अंगारों में, बाबा ने अपना कर डाला। हुए सशंकित सभी वहां, लख तांडवनृत्य निराला॥
समझ गए सब लोग, कि कोई भक्त पड़ा संकट में। क्षुभित खड़े थे सभी वहां, पर पड़े हुए विस्मय में॥
उसे बचाने की ही खातिर, बाबा आज विकल है। उसकी ही पीड़ा से पीड़ित, उनकी अंत:स्थल है॥
इतने में ही विविध ने अपनी, विचित्रता दिखलाई। लख कर जिसको जनता की, श्रद्धा सरिता लहराई॥
लेकर संज्ञाहीन भक्त को, गाड़ी एक वहां आई। सन्मुख अपने देख भक्त को, साईं की आंखें भर आई॥
शांत, धीर, गंभीर, सिंधु-सा, बाबा का अंत:स्थल। आज न जाने क्यों रह-रहकर, हो जाता था चंचल॥
आज दया की मूर्ति स्वयं था, बना हुआ उपचारी। और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी॥
आज भक्त की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था काशी।उसके ही दर्शन की खातिर थे, उमड़े नगर-निवासी।
जब भी और जहां भी कोई, भक्त पड़े संकट में। उसकी रक्षा करने बाबा, आते हैं पलभर में॥
युग-युग का है सत्य यह, नहीं कोई नई कहानी। आपद्ग्रस्त भक्त जब होता, जाते खुद अंर्तयामी॥
भेदभाव से परे पुजारी, मानवता के थे साईं। जितने प्यारे हिन्दू-मुस्लिम, उतने ही थे सिक्ख ईसाई॥
भेद-भाव मंदिर-मस्जिद का, तोड़-फोड़ बाबा ने डाला। राह रहीम सभी उनके थे, कृष्ण करीम अल्लाताला॥
घंटे की प्रतिध्वनि से गूंजा, मस्जिद का कोना-कोना। मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम, प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना॥
चमत्कार था कितना सुंदर, परिचय इस काया ने दी। और नीम कडुवाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी॥
सब को स्नेह दिया साईं ने, सबको संतुल प्यार किया। जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उसको वही दिया॥
ऐसे स्नेहशील भाजन का, नाम सदा जो जपा करे। पर्वत जैसा दुख न क्यों हो, पलभर में वह दूर टरे॥
साईं जैसा दाता हमने, अरे नहीं देखा कोई। जिसके केवल दर्शन से ही, सारी विपदा दूर गई॥
तन में साईं, मन में साईं, साईं-साईं भजा करो। अपने तन की सुधि-बुधि खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो॥
जब तू अपनी सुधि तज, बाबा की सुधि किया करेगा। और रात-दिन बाबा-बाबा, ही तू रटा करेगा॥
तो बाबा को अरे! विवश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी। तेरी हर इच्छा बाबा को पूरी ही करनी होगी॥
जंगल, जंगल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को। एक जगह केवल शिरडी में, तू पाएगा बाबा को॥
धन्य जगत में प्राणी है वह, जिसने बाबा को पाया। दुख में, सुख में प्रहर आठ हो, साईं का ही गुण गाया॥
गिरे संकटों के पर्वत, चाहे बिजली ही टूट पड़े। साईं का ले नाम सदा तुम, सन्मुख सबके रहो अड़े॥
इस बूढ़े की सुन करामत, तुम हो जाओगे हैरान। दंग रह गए सुनकर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान॥
एक बार शिरडी में साधु, ढ़ोंगी था कोई आया। भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया॥
जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर, करने लगा वह भाषण। कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन॥
औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शक्ति। इसके सेवन करने से ही, हो जाती दुख से मुक्ति॥
अगर मुक्त होना चाहो, तुम संकट से बीमारी से। तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से, हर नारी से॥
लो खरीद तुम इसको, इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी। यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह, गुण उसके हैं अति भारी॥
जो है संतति हीन यहां यदि, मेरी औषधि को खाए। पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे वह मुंह मांगा फल पाए॥
औषधि मेरी जो न खरीदे, जीवन भर पछताएगा। मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहां आ पाएगा॥
दुनिया दो दिनों का मेला है, मौज शौक तुम भी कर लो। अगर इससे मिलता है, सब कुछ, तुम भी इसको ले लो॥
हैरानी बढ़ती जनता की, देख इसकी कारस्तानी। प्रमुदित वह भी मन ही मन था, देख लोगों की नादानी॥
खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौड़कर सेवक एक। सुनकर भृकुटी तनी और, विस्मरण हो गया सभी विवेक॥
हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ।या शिरडी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ॥
मेरे रहते भोली-भाली, शिरडी की जनता को। कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को॥
पलभर में ऐसे ढोंगी, कपटी नीच लुटेरे को। महानाश के महागर्त में पहुंचा, दूं जीवन भर को॥
तनिक मिला आभास मदारी, क्रूर, कुटिल अन्यायी को। काल नाचता है अब सिर पर, गुस्सा आया साईं को॥
पलभर में सब खेल बंद कर, भागा सिर पर रखकर पैर। सोच रहा था मन ही मन, भगवान नहीं है अब खैर॥
सच है साईं जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में। अंश ईश का साईं बाबा, उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में॥
स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभूषण धारण कर। बढ़ता इस दुनिया में जो भी, मानव सेवा के पथ पर॥
वही जीत लेता है जगत के, जन जन का अंत:स्थल। उसकी एक उदासी ही, जग को कर देती है विहल॥
जब-जब जग में भार पाप का, बढ़-बढ़ ही जाता है। उसे मिटाने की ही खातिर, अवतारी ही आता है॥
पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के। दूर भगा देता दुनिया के, दानव को क्षण भर के॥
ऐसे ही अवतारी साईं, मृत्युलोक में आकर। समता का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप मिटाकर॥
नाम द्वारका मस्जिद का, रखा शिरडी में साईं ने। दाप, ताप, संताप मिटाया, जो कुछ आया साईं ने॥
सदा याद में मस्त राम की, बैठे रहते थे साईं। पहर आठ ही राम नाम को, भजते रहते थे साईं॥
सूखी-रूखी ताजी बासी, चाहे या होवे पकवान। सौदा प्यार के भूखे साईं की, खातिर थे सभी समान॥
स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे। बड़े चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे॥
कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग में जाते थे। प्रमुदित मन में निरख प्रकृति, आनंदित वे हो जाते थे॥
रंग-बिरंगे पुष्प बाग के, मंद-मंद हिल-डुल करके। बीहड़ वीराने मन में भी स्नेह सलिल भर जाते थे॥
ऐसी सुमधुर बेला में भी, दुख आपात, विपदा के मारे। अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहते बाबा को घेरे॥
सुनकर जिनकी करूणकथा को, नयन कमल भर आते थे। दे विभूति हर व्यथा, शांति, उनके उर में भर देते थे॥
जाने क्या अद्भुत शक्ति, उस विभूति में होती थी। जो धारण करते मस्तक पर, दुख सारा हर लेती थी॥
धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन, जो बाबा साईं के पाए। धन्य कमल कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाए॥
काश निर्भय तुमको भी, साक्षात् साईं मिल जाता।वर्षों से उजड़ा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता॥
गर पकड़ता मैं चरण श्री के, नहीं छोड़ता उम्रभर॥ मना लेता मैं जरूर उनको, गर रूठते साईं मुझ पर॥
।। इतिश्री साईं चालीसा समाप्त ।।
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Shri Sai Chalisa (English)
Pehle Sai Ke Charano Mein, Apna Shish Namau Mein.
Kaise Shirdi Sai Aaye, Sara Haal Sunau Mein.
Kaun He Mata, Pita Kaun He, Yah Na Kisi Ne bhi Jana.
Kaha Janam Sai Ne Dhara, Prashn Paheli Raha Bana.
Koi Kahe Ayodhya Ke Ye, Ramchandra Bhagavan Hai.
Koi Kehta Saibaba, Pavan-Putra Hanuman Hai.
Koi Kehta Mangal Murti, Shri Gajanan Hai Sai.
Koi Kehta Gokul-Mohan, Devaki Nandan Hai Sai.
Shankar Samjh Bhagat Kayi To, Baba Ko Bhajte Rehte.
Koi Keh Avatar Datt Ka, Puja Sai Ki Karte.
Kuch Bhi Mano Unko Tum, Par Sai Hai Sache Bhagvan.
Bade Dayalu, Denbandhu, Kitano Ko Diya Hai Jivan Daan.
Kai Varsh Pehle Ki Ghatna, Tumhe Sunaunga Mein Baat.
Kisi Bhagyashali Ki, Shirdi Me Aai Thi Baraat.
Aaya Saath Usi Ke Tha, Balak Ek Bahut Sundar.
Aaya, Aakar Vehi Bas Gaya, Paavan Shirdi Kiya Nagar.
Kai Dino Tak Raha Bhatkata, Bhiksha Maangi Usne Dar-Dar.
Aur Dikhai Aisi Leela, Jag Me Jo Ho Gayi Amar.
Jaise-Jaise Umar Badhi, Vaise Hi Badhati Gayi Shaan.
Ghar-Ghar Hone Laga Nagar Me Sai Baba Ka Gungaan.
Dig-Digant Me Laga Gunjane Phir To Sai ji Ka Naam.
Deen-Dukhi Ki Rakhsha Karna, Yahi Raha Baba Ka Kaam.
Baba Ke Charno Me Jakar, Jo Kahta Mein Hu Nirdhan.
Daya Usi Par Hoti Unki, Khul Jate Dukh Ke Bandhan.
Kabhi Kisi Ne Maangi Bhiksha, Do Baba Mujh ko Santaan.
Evam Astu Tab Kahakar Sai, Dete The Usko Vardaan.
Svayam Dukhi Baba Ho Jaate, Deen-Dukhijan Ka Lakh Haal.
Antahkaran Shri Sai Ka, Sagar Jaisa Raha Vishal.
Bhagat Ek Madraasi Aaya, Ghar Ka Bahut Bada Dhanvan.
Maal Khajana Behad Uska, Keval Nahi Rahi Santaan.
Laga Manane Sai Naath Ko, Baba Mujh Par Daya Karo.
Jhanjha Se Jhankrit Naiya Ko, Tum Hi Mera Paar Karo.
Kuldeepak Ke Abhaav Me, Vyarth Hai Daulat Ki Maaya.
Aaj Bhikhari Ban Kar Baba, Sharan Tumhari Mein Aaya.
De Do Mujhko Putar Daan, Mein Rini Rahunga Jivan Bhar.
Aur Kisi Ka Aas Na Mujhko Sirf Bharosa Hai Tum Par.
Anunae-Vinae Bahut Ki Usne, Charno Me Dharke Shish.
Tab Parsan Hokar Baba Ne, Diya Bhagat Ko Yeh Aashish.
Alla Bhala Karega Tera,’ Putar Janam Ho Tere Ghar.
Kripa Hogi Tum Par Uski, Aur Tere Us Baalak Par.
Ab Tak Nahi Kisi Ne Paaya, Sai Ki Kripa Ka Paar.
Putar Ratan De Madrasi Ko, Dhany Kiya Uska Sansaar.
Tan-Man Se Jo Bhaje Usi Ka, Jag Me Hota Hai Uddhar.
Sach Ko Aanch Nahi Hai Koi, Sada Jhooth Ki Hoti Haar.
Mein Hu Sada Sahaare Uske, Sada Rahunga Usaka Daas.
Sai Jaisa Prabhu Mila Hai, Itni Hi Kam Hai Kya Aas.
Mera Bhi Din Tha Ek Aisa, Milti Nahi Mujhe Thi Roti.
Tan Par Kapda Dur Raha Tha, Shesh Rahi Nanhi Si Langoti.
Sarita Sammukh Hone Par Bhi Mein Pyaasa Ka Pyaasa Tha.
Durdin Mera Mere Upar, Daavagni Barasata Tha.
Dharti Ke Atirikt Jagat Me, Mera Kuch Avalamb Na Tha.
Bana Bhikhaari Mein Duniya Me, Dar-Dar Thokar Khata Tha.
Aise Me Ek Mitar Mila Jo, Param Bhagat Sai Ka Tha.
Janjalo Se Mukat Magar Is, Jagati Me Vah Mujhsa Tha.
Baba Ke Darshan Ki Khaatir, Mil kar Dono Ne Kiya Vichaar.
Sai Jaise Dayamurti Ke, Darshan Ko Ho Gaye Taiyar.
Paavan Shirdi Nagari Me Jakar, Dekhi Matvali Murti.
Dhane Janam Ho Gaya Ki Hamne, Jab Dekhi Sai Ki Sorati.
Jab Se Kiye Hai Darshan Hamne, Dukh Saara Kafur Ho Gaya.
Sankat Sare Mite Aur, Vipadao Ka Ant Ho Gaya.
Maan Aur Samman Mila, Bhiksha Me Hamko Baba Se.
Pratibimbit Ho Uthe Jagat Me, Hum Sai Ki Abhe Se.
Baba Ne Sammaan Diya Hai, Maan Diya Is Jivan Me.
Isaka Hi Sambal Le Mein, Hansata Jaaunga Jivan Me.
Sai Ki Leela Ka Mere, Man Par Aisa Asar Hua.
Lagta Jagati Ke Kan-Kan Me, Jaise Ho Vah Bhara Hua.
Kashiram Baba Ka Bhagat, Is Shirdi Me Rehata Tha.
Mein Sai Ka Sai Mera, Vah Duniya Se Kahata Tha.
Sikar Svayam Vastra Bechta, Gram Nagar Baajaro Me.
Jhankrit Usaki Hrid Tantri Thi, Sai Ki Jhankaro Me.
Stabdh Nisha Thi, The Soye, Rajani Aanchal Me Chand –Sitare.
Nahi Sujhata Raha Hath Ko Haath Timir Ke Mare.
Vastra Bechkar Laut Raha Tha, Hay! Haat Se Kashi.
Vichitra Bada Sanyog Ki Us Din, Aata Tha Vah Ekaaki.
Gher Raah Me Khade Ho Gaye, Use Kutil, Anyaayi.
Maro Kato Luto Iski Hi Dhvani Padi Sunai.
Loot Piit Kar Use Vaha Se, Kutil Gaye Champat Ho.
Aaghato Se Marmahat Ho, Usne Di Sangya Kho.
Bahut Der Tak Pada Reha Vah, Vahi Usi Haalat Me.
Jaane Kab Kuch Hosh Ho Utha, Usko Kisi Palak Me.
Anjane Hi Uske Muh Se, Nikal Pada Tha Sai.
Jiski Pratidhvani Shirdi Me, Baba Ko Padi Sunaai.
Kshubdh Utha Ho Manas Unka, Baba Gaye Vikal Ho.
Lagta Jaise Ghatna Sari, Ghati Unhi Ke Sammukh Ho.
Unmadi Se Idhar-Udhar, Tab Baba Lage Bhatakane.
Sammukh Chije Jo bhi Aai, Unko Lage Patkane.
Aur Dhadhkate Angaro Me, Baba Ne Apna Kar Dala.
Huye Sashankit Sabhi Vaha, Lakh Tandav Nritya Nirala.
Samjh Gye Sab Log Ki Koi, Bhagat Pada Sankat Me.
Kshubhit Khade The Sabhi Vaha Par, Pade Huye Vismae Me.
Use Bachane Ke Hi Khatir, Baba Aaj Vikal Hai.
Uski Hi Piida Se Piidit, Unka Antahsthal Hai.
Itne Me Hi Vidhi Ne Apni, Vichitrata Dikhlai.
Lakh Kar Jisko Janta Ki, Shradha Sarita Lahrai.
Lekar Sangyahin Bhagat Ko, Gadi Ek Vaha Aai.
Samukh Apne Dekh Bhagat Ko, Sai Ki Aankhe Bhar Aai.
Shant, Dhir, Gambhir Sindhu Sa, Baba Ka Antahsthal.
Aaj Na Jane Kyo Reh-Reh Kar, Ho Jata Tha Chanchal.
Aaj Daya Ki Murti Svayam Tha, Bana Hua Upachari.
Aur Bhagat Ke Liye Aaj Tha, Dev Bana Pratihari.
Aaj Bhagati Ki Visham Pariksha Me, Safal Hua Tha Kashi.
Uske Hi Darshan Ke Khatir, The Umade Nagar-Nivasi.
Jab Bhi Aur Jaha Bhi Koi, Bhagat Pade Sankat Me.
Uski Rakhsha Karne Baba, Aate He Palbhar Me.
Yug-Yug Ka Hai Sathi Yah, Nahi Koi Nai Kahani.
Aapatgrast Bhagat Jab Hota, Aate Khud Antaryami.
Bhed-Bhav Se Pare Pujaari, Manavata Ke The Sai.
Jitne Pyare Hindu-Muslim, Utne Hi The Sikh Isai.
Bhed-Bhav Mandir-Masjid Ka, Tod-Phod Baba Ne Dala.
Ram-Rahim Sabhi Unke The, Krishna-Karim-Allatala.
Ghante Ki Pratidvani Se Gunja, Masjid Ka Konaa-Konaa.
Mile Paraspar Hindu-Muslim, Pyaar Badha Din-Duna.
Chamatkar Tha Kitna Sundar, Parichae Is Kaya Ne Di.
Aur Neem Kadvahat Me Bhi, Mithas Baba Ne Bhar Di.
Sabko Sneh Diya Sai Ne, Sabko Santul Pyar Kiya.
Jo Kuch Jisne Bhi Chaha, Baba Ne Unko Vahi Diya.
Aise Sneh Shil Bhajan Ka, Naam Sada Jo Jpa Kare.
Parvat Jaisa Dukh Na Kyu Ho, Palbhar Me Vah Dur Tare.
Sai Jaisa Data Hamne, Are Nahi Dekha Koi.
Jiske Keval Darshan Se Hi, Saari Vipada Dur Ho Gai.
Tan Me Sai, Man Me Sai, Sai-Sai Bhaja Karo.
Apne Tan Ki Sudhi-Budhi Khokar, Sudhi Uski Tum Kiya Karo.
Jab Tu Apni Sudhi Taj, Baba Ki Sudhi Kiya Karega.
Aur Raat-Din Baba, Baba Hi Tu Rata Karega.
To Baba Ko Are! Vivash Ho, Sudhi Teri Leni Hi Hogi.
Teri Har Ichchha Baba Ko, Puri Hi Karni Hogi.
Jangal-Jangal Bhatak Na Pagal, Aur Dhundhane Babako.
Ek Jagah Keval Shirdi Me, Tu Payega Baba Ko.
Dhane Jagat Me Prani Hai Vah, Jisne Baba Ko Paya.
Dukh Me Sukh Me Parhar Aath Ho, Sai Ka Hi Gun Gaya.
Gire Sankato Ke Parvat, Chahe Bijali Hi Toot Pade.
Sai Ka Le Naam Sada Tum, Sammukh Sab Ke Raho Ade.
Is Budhe Ki Karamat Sun, Tum Ho Jaoge Hairan.
Dang Rah Gaye Sunkar Jisko, Jane Kitane Chatur Sujan.
Ek Baar Shirdi Me Saadhu, Dhongi Tha Koi Aaya.
Bholi-Bhali Nagar-Nivasi, Janta Ko Tha Bharmaya.
Jadi-Butiya Unhe Dikhakar, Karne Laga Vaha Bhashan.
Kahne Laga Suno Shrotagan, Ghar Mera Hai Vrindavan.
Aushadhi Mere Paas Ek Hai, Aur Jab Isme Shakti.
Iske Sevan Karne Se Hi, Ho Jaati Dukh Se Mukti.
Agar Mukt Hona Chaho Tum, Sankat Se Bimari Se.
To Hai Mera Namr Nivedan, Har Nar Se Har Nari Se.
Lo Kharid Tum Isko Iski, Sevan Vidhiyaa Hai Nyari.
Yadyapi Tuchch Vastu Hai Yah, Gun Uske Hai Ati Bhari.
Jo Hai Santati Heen Yaha Yadi, Meri Aushadhi Ko Khaye.
Putar-Ratn Ho Prapt, Are Vah Muh Manga Phal Paye.
Aushadhi Meri Jo ann Kharide, Jivan Bhar Pachtayega.
Mujh Jaisa Prani Shayad Hi, Are Yaha Aa Payega.
Duniya Do Din Ka Mela Hai, Mauj Shauk Tum Bhi Kar Lo.
Gar Isse Milta Hai Sab Kuch, Tum Bhi Isko Lelo.
Hairani Badhati Janta Ki, Lakh Iski Karastani.
Pramudit Vah Bhi Man Hi Man Tha, Lakh Logo Ki Naadani.
Khabar Sunane Baba Ko Yah, Gaya Daudkar Sevak Ek.
Sunkar Bhrikuti Tani Aur, Vismaran Ho Gaya Sabhi-Vivek.
Hukam Diya Sevak Ko, Satvar Pakad Dushat Ko Lao.
Ya Shirdi Ki Sima Se, Kapti Ko Dur Bhagavo.
Mere Rahte Bholi-Bhali, Shirdi Ki Janta Ko.
Kaun Nich Aisa Jo Sahas Karta Hai Chalane Ko.
Pal Bhar Me Hi Aise Dhongi, Kapati Niich Lutere Ko.
Mahanash Ke Mahagart Me, Pahuncha Du Jivan Bhar Ko.
Tanik Mila Aabhas Madari Krur, Kutil Anyayi Ko.
Kaal Nachta Hai Ab Sir Par, Gussa Aaya Sai Ko.
Palbhar Me Sab Khel Band Kar, Bhaga Sir Par Rakhkar Pair.
Sochta Tha Man Hi Man, Bhagvan Nahi Hai Ab Khair.
Sach Hai Sai Jaisa Daani, Mil Na Sakega Jag Me.
Ansh Ish Ka Saibaba, Unhe Na Kuchh Bhi Mushkil Jag Me.
Sneh, Shil, Saujany Aadi Ka, Aabhushan Dharan Kar.
Badhata Is Duniya Me Jo Bhi Manav-Seva Ke Path Par.
Vahi Jit Leta Hai Jagati Ke, Jan-Jan Ka Antahsthal.
Uski Ek Udasi Hi Jag Ko, Kar Deti Hai Vihval.
Jab-Jab Jag Me Bhaar Paap Ka, Badh Badh Hi Jata Hai.
Use Mitane Ke Hi Khaatir, Avatari Hi Aata Hai.
Paap Aur Anyae Sabhi Kuch, Is Jagti Ka Har Ke.
Dur Bhaga Deta Duniya Ke, Danav Ko Kshan Bhar Me.
Sneh Sudha Ki Dhaar Barsane, Lagati Hai Is Dunia Me.
Gale Paraspar Milne Lagte, Hai Jan-Jan Aapas Me.
Aise Hi Avatari Sai, Mrityulok Me Aakar.
Samta Ka Yah Paath Padhaaya, Sabko Apna Aap Mitakar.
Naam Dwarka Masjid Ka, Rakkha Shirdi Me Sai Ne.
Daap, Taap, Santaap Mitaya, Jo Kuchh Aaya Sai Ne.
Sada Yaad Me Mast Ram Ki, Baithe Rahte The Sai.
Pahar Aath Hi Ram Naam Ka, Bhajate Rehate The Sai.
Sukhi-Rukhi Taaji-Baasi, Chahe Ya Hove Pakvaan.
Sada Pyaar Ke Bhukhe Sai Ki Khatir The Sabhi Saman.
Sneh Aur Shradha Se Apni, Jan Jo Kuch De Jate The.
Bade Chaav Se Us Bhojan Ko, Baba Paavan Karte The.
Kabhi-Kabhi Man Bahlane Ko, Baba Bag Me Jate The.
Pramudit Man Nirakh Prakriti, Chata Ko Ve Hote The.
Rang-Birange Pushap Bag Ke, Mand-Mand Hil-Dul Karake.
Bihad Viraane Man Me Bhi, Sneh Salil Bhar Jaate The.
Aisi Sumadhur Bela Me Bhi, Dukh Aapaat Vipada Ke Mare.
Apne Man Ki Vyatha Sunaane, Jan Rahte Baba Ko Ghere.
Sunakar Jinki Karun Katha Ko, Nayan Kamal Bhar Aate The.
De Vibhuti Har Vyatha, Shanti Unke Ur Me Bhar Dete The.
Jane Kya Adbhut, Shakati, Us Vibhuti Me Hoti Thi.
Jo Dhaaran Karte Mastak Par, Dukh Saara Har Leti Thi.
Dhane Manuj Ve Saakshaat Darshan, Jo Baba Sai Ke Paaye.
Dhane Kamal Kar Unke Jinse, Charan-Kamal Ve Parsaye.
Kash Nirbhay Tumko Bhi, Sakshaat Sai Mil Jaata.
Barso Se Ujada Chaman Apna, Phir Se Aaj Khil Jata.
Gar Pakdata Mein Charan Shri Ke, Nahi Chodata Umrabhar.
Mana Leta Mein Jarur Unko, Gar Ruthte Sai Mujh Par.
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