नवरात्रि या नौदुर्गा नाम के अनुसार नौ दिनो का भक्ति पूर्ण उत्सव होता है। इन नौ दिनो में माँ आदि शक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है और उन्हें प्रसन्न किया जाता है। नवरात्रि पर्व वर्ष में चार बार मनाया जाता है, जिनमे से दो मुख्य रूप से और दो गुप्त रूप से मनाई जाती है। मुख्य रूप की नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि कहते है। चैत्र नवरात्रि हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होकर रामनवमी तक मनायी जाती है और शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navaratri) आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होकर नवमी तिथि तक मनायी जाती है।
माँ दुर्गा के नौ रूप
वैसे तो दुर्गा जी के 108 नाम बताये जाते हैं लेकिन नवरात्रि में उनके नौ रूपों की स्तुति और पूजा-पाठ की जाती है। स्वयं ब्रह्मा जी ने माँ दुर्गा के नौ रूपों का उल्लेख संक्षेप में इस श्लोक द्वारा किया है।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
माँ शैलपुत्री
प्रथम नवरात्र में माँ दुर्गा की शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। इन्हें हेमावती तथा पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं। माँ का वाहन सिंह है तथा इन्हें गाय का घी अथवा उससे बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है।
माँ ब्रह्मचारिणी
दूसरे नवरात्र में माँ के ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। जो साधक माँ के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं। माँ ब्रह्मचारिणी का कोई भी वाहन नहीं है पैर ही उनके वाहन है माँ को शक्कर का भोग प्रिय है।
माँ चंद्रघंटा
माँ के इस रूप में मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र बना होने के कारण इनका नाम चन्द्रघंटा पड़ा तथा तीसरे नवरात्र में माँ के इसी रूप की पूजा की जाती है तथा माँ की कृपा से साधक को संसार के सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। शेर पर सवारी करने वाली माता को दूध का भोग प्रिय है।
माँ कुष्मांडा
अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली माँ कुष्मांडा की पूजा चौथे नवरात्र में करने का विधान है। इनकी आराधना करने वाले भक्तों के सभी प्रकार के रोग एवं कष्ट मिट जाते हैं तथा साधक को माँ की भक्ति के साथ ही आयु, यश और बल की प्राप्ति भी सहज ही हो जाती है। माँ को भोग में मालपुआ अति प्रिय है।
माँ स्कंदमाता
पंचम नवरात्र में आदिशक्ति माँ दुर्गा की स्कंदमाता के रूप में पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमातापड़ा। इनकी पूजा करने वाले साधक संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं। उनके जीवन में किसी भी प्रकार कीवस्तु का कोई अभाव कभी नहीं रहता। इन्हें पद्मासनादेवी भी कहते हैं। माँ का वाहन सिंह है और इन्हें केले का भोग अति प्रिय है
पंचम नवरात्र में आदिशक्ति माँ दुर्गा की स्कंदमाता के रूप में पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। इनकी पूजा करने वाले साधक संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं। उनके जीवन में किसी भी प्रकार की वस्तु का कोई अभाव कभी नहीं रहता। इन्हें पद्मासनादेवी भी कहते हैं। माँ का वाहन सिंह है और इन्हें केले का भोग अति प्रिय है।
माँ कात्यायनी
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति माँ दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा। छठे नवरात्र में माँ के इसी रूप की पूजा की जाती है। माँ की कृपा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारों फलों की जहां प्राप्ति होती है। वहीं वह आलौकिक तेज से अलंकृत होकर हर प्रकार के भय, शोक एवं संतापों से मुक्त होकर खुशहाल जीवन व्यतीत करता है। और माँ को शहद अति प्रिय है।
माँ कालरात्रि
सभी राक्षसों के लिए कालरूप बनकर आई माँ दुर्गा के इस रूप की पूजा सातवें नवरात्र के दिन की जाती है। माँ के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के भूत, पिशाच एवं भय समाप्त हो जाते हैं। माँ की कृपा से भानूचक्र जागृत होता है और भक्त हमेशा भयमुक्त रहता हैं। माँ गधे की सवारी करती है और माँ को गुड़ का भोग अतिप्रिय है।
माँ महागौरी
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह साल की उम्र में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं। अपने अत्यधिक गौर रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। अपने इन गौर आभा के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। माँ महागौरी केवल सफेद वस्त्र धारण करतीं है उसी के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है। आदिशक्ति माँ दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा आठवें नवरात्र में की जाती है। माँ का वाहन बैल है और माँ को हलवे का भोग लगाया जाता है।
माँ सिद्धिदात्री
शक्ति की सर्वोच्च देवी माँ आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। नौवें नवरात्र में माँ के इस रूप की पूजा एवं आराधना की जाती है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है माँ का यह रूप साधक को सभी प्रकार की ऋद्धियां एवं सिद्धियां प्रदान करने वाला है। जिस पर माँ की कृपा हो जाती है उसके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। माँ शेर पर बिराजमान है माँ को खीर अति प्रिय है अत: माँ को खीर का भोग लगाना चाहिए।
शारदीय नवरात्रि 2021 (Shardiya Navratri 2021)
हर वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत श्राद्ध की सर्व पित्र अमावस्या के बाद ही हो जाती है।इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर 2021 से आरंभ होकर 14 अक्टूबर 2021 को समाप्त हो रही है। इस बार तृतीया व चतुर्थी तिथि एक साथ पड़ रही है, इसी वजह से शारदीय नवरात्र 8 दिनों तक ही होगा। 15 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। Navratri 2021 October date -नवरात्र 2021 अक्टूबर की तिथियां
दिनांक | वार / दिन | तिथि | स्वरूप |
7 अक्टूबर 2021 |
गुरुवार |
प्रतिपदा |
शैलपुत्री |
8 अक्टूबर 2021 |
शुक्रवार |
द्वितीया |
ब्रह्मचारिणी |
9 अक्टूबर 2021 |
शनिवार |
तृतीया व चतुर्थी |
चंद्रघंटा व कुष्मांडा |
10 अक्टूबर 2021 |
रविवार |
पंचमी |
स्कंदमाता |
11 अक्टूबर 2021 |
सोमवार |
षष्ठी |
कात्यायनी |
12 अक्टूबर 2021 |
मंगलवार |
सप्तमी |
कालरात्रि |
13 अक्टूबर 2021 |
बुधवार |
अष्टमी |
महागौरी |
14 अक्टूबर 2021 |
गुरुवार |
नवमी |
सिद्धिदात्री |
घटस्थापना स्थापना का शुभ मुहूर्त (Navratri Kalash Sthapana Muhurat 2021)
नवरात्रि के दौरान घटस्थापना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह नौ दिनों के उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। घटस्थापना देवी शक्ति का आह्वान है और शास्त्रों में नवरात्रि की शुरुआत में एक निश्चित अवधि के दौरान घटस्थापना करने के लिए नियमों और दिशानिर्देशों को अच्छी तरह से परिभाषित किया है। घटस्थापना करने का शुभ मुहूर्त प्रतिपदा के दिन एक तिहाई होता है। यदि किसी कारण इस मुहूर्त में घटस्थापना नहीं कर पाते तो अभिजीत मुहूर्त के दौरान घटस्थापना की जा सकती है।
7 अक्टूबर 2021 , बृहस्पतिवार को आश्विन घटस्थापना
घटस्थापना मुहूर्त – 06:17 ए एम से 07:07 ए एम (अवधि – 00 घण्टे 50 मिनट्स)
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – 11:45 ए एम से 12:32 पी एम (अवधि – 00 घण्टे 47 मिनट्स)
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