देव दीपावली ( Dev Diwali )या देवताओं की दीपावली हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। हिन्दू कैलंडर के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली के 15 दिन के बाद मनाया जाता है। इस पर्व के दिन उत्तर प्रदेश के धार्मिक शहर वाराणसी(काशी) की रौनक़ देखते ही बनती है। देव दिवाली देवताओं का त्योहार है, इस दिन माँ गंगा और भोलेनाथ की बड़े धूम-धाम के पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की इस दिन सभी देवी देवता भगवान शिव के विजयोत्सव को मनाने पृथ्वी पर आए थे और इस दिन को दीपावली उत्सव की तरह मनाया था।
देव दीपावली 2021 ( Dev Diwali 2021)
दिनांक – 18 नवंबर 2021
वार – बृहस्पतिवार
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 18 नवंबर 2021 को 12:00 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 19 नवंबर 2021 को 02:26 पी एम बजे
प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त – 05:09 पी एम से 07:47 पी एम
अवधि – 02 घण्टे 38 मिनट्स
देव दीपावली व्रत कथा ( Legend of Dev Diwali )
पौराणिक कथा के अनुसार, शिव जी और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध कर दिया तो उसका बदला लेने के लिए उसके तीन पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष औऱ विद्युन्माली ने ब्रह्मा जी की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न करके उनसे अमर होने का वरदान मांगा परंतु ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान देने से मना कर दिया। ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम इसकी जगह कुछ और वरदान मांग लो इसके बाद तारकासुर के पुत्रों ने कहा “आप हमें वरदान दीजिए की आप हमारे नाम के नगर बनायेंगे और हम तीनो भाइयों का वध एक ही तीर से हो। ब्रह्मा जी ने उन्हें तथास्तु कह दिया।
ब्रह्मा जी से वरदान पाने के बाद तारकासुर के तीनों पुत्रों ने तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया। और देवी देवताओं पर अत्याचार करने लगे। उनके अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए सभी देवी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और भोलेनाथ को सारा वृत्तांत बताया । उन्होंने तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली का वध कर उनके अत्याचारों से मुक्ति प्रदान करने के लिए प्रार्थना की। तब भोलेनाथ ने देव विश्वकर्मा से एक रथ का निर्माण करवाया और उस दिव्य रथ पर सवार होकर भगवान शिव दैत्यों का वध करने निकले। देव और राक्षसों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया और जब युद्ध के दौरान तीनों दैत्य यानि त्रिपुरा एक साथ आए तो भगवान शंकर ने एक ही तीर से ही तीनों का वध कर दिया। इसके बाद से ही भोलेनाथ को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। तब देवताओं ने भोलेनाथ की विजय की खुशी में उनकी नगरी काशी नगरी वाराणसी(काशी) में दीप दान किया। कहते हैं तभी से वाराणसी(काशी) में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव-दिवाली मनाने की परंपरा चली आ रही है।
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देव दीपावली पर क्या करें?
इस त्योहार पर, भक्त प्रातःकाल पवित्र गंगा नदी में स्नान करते हैं जिसे कार्तिक स्नान के रूप में जाना जाता है। इसके बाद भक्त पहले भगवान गणेश जी की फिर भगवान शिव और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करते है। भगवान शिव को इस दिन पूजा में पुष्प, घी, नैवेद्य, बेलपत्र और भगवान विष्णु को पूजा में पीले फूल, नैवेद्य, पीले वस्त्र, पीली मिठाई अर्पित करते हैं। इसके बाद दीप दान किया जाता है, अर्थात् देवी गंगा को श्रद्धा के प्रतीक के रूप में दीपक अर्पित किए जाते हैं।
वाराणसी की गंगा आरती इस धार्मिक त्योहार का एक प्रमुख आकर्षण है, जो 24 पुजारियों और 24 युवा लड़कियों द्वारा अत्यंत पवित्रता और भक्ति के साथ किया जाता है।
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