धर्म ग्रंथों में सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहा गया हैं। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। इसलिए ऊर्जा और सकारात्मकता बढ़ाने के लिए सूर्य का पूजन किया जाता है। नियमित सूर्य को अर्घ्य देने/ जल चढ़ाने (Surya Arghya) से हमारी नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है। साथ ही बल, तेज, पराक्रम, सम्मान और उत्साह बढ़ता है। धर्म ग्रंथों में सूर्य देव को जल चढ़ाने के कुछ खास नियम बताये गए है, जिनका पालन सभी को करना चाहिए अन्यथा सूर्य देव को जल चढाने का फल प्राप्त नहीं होता हैं। आइये जानते है क्या है यह नियम –
सूर्य को जल चढ़ाने के नियम – Rules of Surya Arghya
- सबसे पहले स्नान के बाद आसन पर खड़े हो जाएं।
- आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें और उसमें मिश्री भी मिलाएं। मान्यता है कि सूर्यदेव को मीठा जल चढ़ाने से मंगल के दोष दूर होता है।
- सुबह के समय सूर्य कि किरणें औषधी के समान काम करती हैं। इसलिए सूर्य को अर्घ्य देने से पहलो सूर्यदेव के हाथ जोड़कर कुछ मिनट सीधे सूर्य को देखें। ये आपको निरोगी बनाता है।
- सूर्य को धीरे-धीरे करके जल चढ़ाएं। ध्यान रखें सूर्यदेव को चढ़ाया जल आपके पैरों को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
- सूर्य देव को चढ़ाया जल जमीन पर गिरने से अर्घ्य का संपूर्ण लाभ आप नहीं पा सकेंगे, इसलिए चढ़ाएं जल को किसी पात्र में एकत्रित कर लें।
- अर्घ्य देते समय यह मंत्र 11 या 21 बार बोलना चाहिए- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय।मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा:।।
- अर्घ्य देते समय थोड़ा-सा जल बचा लें और सीधे हाथ में लेकर अपने चारों और छिड़के।
- सूर्य देव को जल चढ़ाने के बाद अपने स्थान पर ही तीन बार घुमकर परिक्रमा करें।
- आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें, जहां खड़े होकर आपने सूर्य को जल चढ़ाया हो।
- पात्र में एकत्रित हुए जल को मिट्टी से भरे गमले में डालें।
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