पौष पुत्रदा एकादशी 2024-पुत्रदा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। पौष मास में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं।यह व्रत आमतौर पर विवाहित जोड़ों द्वारा संतान प्राप्ति के लिए किया जाता हैं। विवाहित जोड़े जो संतान की चाहत रखते हैं, पुत्रदा एकादशी व्रत का पालन करते हैं और भगवान विष्णु का दिव्य आशीर्वाद पाने के लिए इस त्योहार से जुड़े विभिन्न अनुष्ठान भी करते हैं।
पुत्रदा एकादशी साल में दो बार मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार पहली पुत्रदा एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनायी जाती है इसे पौष पुत्रदा एकादशी या पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी कहा जाता है, जिसे अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जनवरी या दिसंबर महीने में मनाया जाता है। और दूसरी पुत्रदा एकादशी श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनायी जाती है और इसे श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है जो इंग्लिश कैलेंडर वर्ष के अनुसार जुलाई या अगस्त के महीने में आती है।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल के समय श्री कृष्ण ने अर्जुन के पूछने पर पुत्रदा एकादशी का महत्व बताते हुए कहा था। “हे अर्जुन! संसार में पुत्रदा एकादशी उपवास के समान अन्य दूसरा व्रत नहीं है। इसके पुण्य से प्राणी तपस्वी, विद्वान और धनवान बनता है। पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का उपवास करना चाहिए पुत्र प्राप्ति के लिए इससे बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है। जो कोई व्यक्ति पुत्रदा एकादशी के माहात्म्य को पढ़ता व श्रवण करता है तथा विधानानुसार इसका उपवास करता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। श्रीहरि की अनुकम्पा से वह मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है।”
पौष पुत्रदा एकादशी 2024
दिनांक – 21 जनवरी 2024
वार – रविवार
एकादशी तिथि प्रारम्भ – 20 जनवरी 2024 को 07:26 पी एम बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – जनवरी 21, 2024 को 07:26 पी एम बजे तक
पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 22 जनवरी 2024 को 07:14 ए एम से 09:21 ए एम तक
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्ति समय – 07:51 पी एम
पुत्रदा एकादशी की कथा
पुत्रदा एकादशी की महत्ता सुन अर्जुन के मन में और जिज्ञासा जाग उठी और उस ने भगवान श्री कृष्ण से कहा – हे कमलनयन! आप कृप्या कर इस व्रत की कथा भी मुझे विस्तारपूर्वक बताएं।
श्रीकृष्ण ने कहा– “हे पाण्डुनंदन! इस एकादशी से सम्बंधित जो कथा प्रचलित है, उसे मैं तुम्हें सुनाता हूँ, श्रद्धापूर्वक श्रवण करो-
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। पुत्र ना होने के कारण राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा। राजा रात-दिन इसी चिंता में घुला करता था। इस चिंता के कारण एक दिन वह इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा उत्पन्न हुई , किंतु वह सोचने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है, अतः उसने इस विचार को मन से निकाल दिया। एक दिन इन्हीं विचारों में डूबा हुआ वह घोड़े पर सवार होकर वन को चल दिया।
घोड़े पर सवार राजा वन, पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने वन में देखा कि मृग, बाघ, सिंह, बंदर आदि विचरण कर रहे हैं। हाथी शिशुओं और हथिनियों के बीच में विचर रहा है। उस वन में राजा ने देखा कि कहीं तो सियार कर्कश शब्द निकाल रहे हैं और कहीं मोर अपने परिवार के साथ नाच रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा और ज्यादा दुखी हो गया कि उसके पुत्र क्यों नहीं हैं? इसी सोच-विचार में दोपहर हो गई। वह सोचने लगा कि मैंने अनेक यज्ञ किए हैं और ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन करा सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिण दी है, किंतु फिर भी मुझे यह दुख क्यों मिल रहा है? आखिर इसका कारण क्या है? मैं अपनी व्यथा किससे कहूं? और कौन मेरी व्यथा का समाधान कर सकता है?
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अपने विचारों में खोए राजा को प्यास लगी। वह पानी की तलाश में आगे बढ़ा। कुछ दूर जाने पर उसे एक सरोवर मिला। उस सरोवर में कमल पुष्प खिले हुए थे। सारस, हंस, घड़ियाल आदि जल-क्रीड़ा में मग्न थे। सरोवर के चारों तरफ ऋषियों के आश्रम बने हुए थे। अचानक राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। इसे शुभ शगुन समझकर राजा मन में प्रसन्न होता हुआ घोड़े से नीचे उतरा और सरोवर के किनारे बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम करके उनके पूछा ‘हे विप्रो! आप कौन हैं? और किसलिए यहां रह रहे हैं?’
ऋषि बोले – ‘राजन! आज पुत्र की इच्छा करने वालो को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी है। आज से पांच दिन बाद माघ स्नान है और हम सब इस सरोवर में स्नान करने आए हैं।’
ऋषियों की बात सुन राजा ने कहा – ‘हे मुनियो! मेरा भी कोई पुत्र नहीं है, कृपा कर मुझे भी इस एकादशी व्रत के बारे में बताएं।
ऋषि बोले – ‘हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप इसका उपवास करें। भगवान श्रीहरि की अनुकम्पा से आपके घर अवश्य ही पुत्र होगा।’
राजा ने मुनि के वचनों के अनुसार उस दिन उपवास किया और द्वादशी को व्रत का पारण किया और ऋषियों को प्रणाम कर उन का आशीर्वाद प्राप्त कर वापस अपनी नगरी आ गया। भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिनों बाद ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह के पश्चात उसने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना।
पौष पुत्रदा एकादशी 2024 के मंत्र
- ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र
- विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम
- विष्णु अष्टोत्रम
- संतान गोपाल मन्त्र
देवकीसुतं गोविन्दम् वासुदेव जगत्पतेदेहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:
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