हिन्दू धर्म इकलौता धर्म है जिसे किसी एक व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित नहीं किया गया। कहा जाता है की यह एक धर्म ही नहीं बल्कि यह जीने का तरीका है। इसी कारण हिन्दू धर्म में लौकिक- अलौकिक हर किसी को किसी न किसी रूप में पूजा जाता है और बराबर का सम्मान दिया जाता हैं।
विश्वकर्मा पूजा
हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को निर्माण तथा सृजन का देवता कहा गया है और उन के जन्म दिवस को एक महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को श्रम से जुड़ा हर व्यक्ति बड़ी धूम-धाम से मनाता हैं।भगवान विश्वकर्मा को इस संसार का पहला इंजीनियर कहा जाता है। विश्वकर्मा जी ने सतयुग में स्वर्गलोक, द्वापर में द्वारिका और त्रेतायूग में लंका का निर्माण किया था।
भगवान विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति कैसे हुई?
पौराणिक कथा के अनुसार संसार की रचना के आरम्भ में भगवान विष्णु सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी की नाभि-कमल से चतुर्मुख ब्रह्मा जी दृष्टिगोचर हुए। कहा जाता है की ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म का विवाह वस्तु से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए, इनके सातवें पुत्र वास्तु जो कि शिल्प शास्त्र के ज्ञाता थे । वास्तु का विवाह अंगिरसी से हुआ और इन के पुत्र विश्वकर्मा हुए जो अपने पिता की भातीं वास्तुकला में परिपूर्ण थे।
भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा कब से प्रारम्भ हुई
पौराणिक कथा के अनुसार काशी में एक रथकार अपनी भार्या के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण था और घूम-घूम कर जीवन व्यापन करता था। परंतु अति परिश्रम के बाद भी वह केवल भोजन युक्त धन ही अर्जित कर पता था इसलिए हर समय चिंतित रहता था। इनकी कोई संतान न होने के कारण उस की पत्नी को ताने सुनने पड़ते थे। वो दोनो संतान प्राप्ति के लिए साधु-संतो के यहाँ जाते थे पर उन की ये इच्छा पूरी न हो सकी, तब एक ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी को भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाने को कहा और अमावस्या को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा की कथा सुनने को कहा।
इसके बाद रथकार और उसकी पत्नी ने ब्राह्मण के कथन के अनुसार अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की विधि-विधान से पूजा की और कथा भी सुनी। जिसके फलस्वरूप रथकार को अपने कार्य के लिए अधिक धन प्राप्त होने लगा और उन को पुत्र की प्राप्ति हुई और वो दोनो सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। तभी से विश्वकर्मा जी की पूजा बड़े धूमधाम के साथ की जाने लगी।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था। इस दिन विधि-विधान से भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यवसाय आदि में दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की होती है।खासतौर पर व्यापार वर्ग की सभी परेशानियां और धन-संपदा से जुड़ी दिक्कतें खत्म हो जाती हैं।
ये भी पढ़ें : Adhik Maas 2020: अधिक मास धार्मिक एवं वैज्ञानिक आधार और महत्व
विश्वकर्मा पूजा विधि
- इस दिन अपने दफ़्तर और कारखाने में विशेष पूजा का आयोजन करें।
- इस दिन सारी मशिनो, गाड़ियों, कंप्यूटर और लैपटोप की सफाई करें।
- इस दिन अपने दफ़्तर और कारखाने को अच्छी से सजायें।
- अपने दफ़्तर या कारखाने के पूजा स्थल को साफ कर भगवान विश्वकर्मा जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- अब दीपक प्रज्ज्वलित कर के पुष्प व अक्षत( चावल) भगवान अर्पित करें।
- अब इस मंत्र का जाप करें।
“ओम आधार शक्तये नम:
ओम कूर्माये नम:
ओम अन्नतम नम:
ओम पृतिव्यै नम:।”
- अब भगवान की और अपने मशीनों या औजारों की पूजा कर हवन करें।
- अब आरती करें और प्रसाद का भोग लगायें।
- आरती के पश्चात प्रसाद सब को बाटें।
- पूजन के बाद मशीनों या औजारों का उपयोग ना करें।
विश्वकर्मा जी की आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥
विश्वकर्मा पूजा 2020
इस साल विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर 2020 को बुधवार के दिन मनाई जाएगी।
Discussion about this post