माँ आदिशक्ति सम्पूर्ण जगत का कल्याण करती है| माँ भवानी के नौ के नौ रूप इतने कल्याणकारी है की इनके दर्शन एवं पूजन से भक्त के संकट नष्ट हो जाते है और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है |
मार्कडेंय पुराण के अनुसार माँ आदिशक्ति के नौ स्वरूप है और वो अपने तीसरे स्वरूप मे चंद्रघंटा के नाम से जानी जाती है | नवरात्र के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है | शिव महा पुराण के अनुसार देवी चंद्र घंटा माँ पार्वती का विवाहित रूप है| माँ पार्वती के विवाह के बाद माँ पार्वती ने अपने मस्तक को अर्ध चंद्रमा से सजाना शुरू कर दिया इसलिए वह चंद्रघंटा के रूप मे लोकप्रिय हुई | देवी चंद्रघंटा को क्षमा और शांति की देवी के रूप मे पूजा जाता है | माँ चंद्रघंटा की दस भजाएँ है और माता इनमे अस्त्र -शस्त्र धारण किये रहती हैं। दाहिने हाथो मे त्रिशूल ,गदा, तलवार और कमंडल होता हैतथा वरण पाँचवे हाथ में तथा बाएं हाथों मे कमल का फूल तीर ,धनुष और पाँचवे हाथ मे अभय मुद्रा | सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध मे एक वीरांगना के समान है जिससे दानव –दैत्य भी कापते है |
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माँ चंद्रघंटा की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच घमासान युद्ध हुआ। देवताओं का नेतृत्व गेवराज इंद्र ने किया और असुरों का नेतृत्व महिषासुर ने किया। इस युद्ध में असुरों ने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। महिषासुर स्वर्ग पर राज करने लगा और देवताओं को प्रताड़ित करने लगा। उस से छुटकारा और इंद्र अपना स्वर्ग पुनः पाने के लिए भगवान बिष्णु, ब्रह्मा और शिव जी के पास गये और उन को सब हाल विस्तार से बता कर मदद की गुहार लगायी।
देवताओं द्धारा महिषासुर के अत्याचारों के बारे में सुन भगवान बिष्णु, ब्रह्मा और शिव जी को अत्यंत क्रोध आया। उस क्रोध के कारण तीनो के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई और एक में मिल गयी। इस ऊर्जा से देवी का अवतरण हुआ। इस देवी को भगवान शिव ने त्रिशुल, भगवान विष्णु ने चक्र और अन्य सभी देवी-देवताओं ने शस्त्र प्रदान किए। इस सभी शस्त्रों से सज्जित को कर माँ चंद्रघंटा ने महिषासुर समेत सभी दानवों का वध कर स्वर्गलोक को मुक्त कराया।
माँ चंद्रघंटा की पूजा का विधान
माँ चंद्रघंटा श्री दुर्गा जी का तीसरा स्वरूप है | इनकी पूजा बड़े विधि विधान से करनी चाहिए अतः नवरात्र के तीसरे दिन ब्रह्म मुहुर्त मे उठकर नियमित कार्यों से निर्वित होकर माँ की पूजा करनी चाहिए | इसके बाद माँ चंद्रघंटा को सिंदूर ,अक्षत ,सूंघनधित धूप ,इत्र ,चमेली का पुष्प अर्पित करे | इसके बाद माता को दूध या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाए |
माँ चंद्रघंटा के मंत्र
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
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स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
कवच
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
माँ चंद्रघंटा की आरती
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।
चंद्र समान तुम शीतल दाती। चंद्र तेज किरणों में समाती।।
क्रोध को शांत करने वाली। मीठे बोल सिखाने वाली।
मन की मालक मन भाती हो। चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।।
सुंदर भाव को लाने वाली। हर संकट मे बचाने वाली।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये। श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं। सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।
शीश झुका कहे मन की बाता। पूर्ण आस करो जगदाता।।
कांची पुर स्थान तुम्हारा। करनाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटू महारानी। भक्त की रक्षा करो भवानी।।
ज्योतिष पहलू
ज्योतिष के अनुसार माँ चंद्रघंटा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती है इसलिए इनकी विधिवत उपासना करने से शुक्र ग्रह के द्वारा पड़ने वाले बुरे प्रभाव भी निष्क्रिय हो जाते है |
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