अधिक का शाब्दिक अर्थ है ज़्यादा। जैसे अंग्रेजी कैलेंडर में हर चौथा वर्ष लीप ईयर होता है अर्थात एक दिन ज़्यादा होता है उसी तरह ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। जिसे अधिक मास, मल मास, पुरूषोत्तम मास आदि नामों से जाना जाता हैं।
अधिक मास की गणना
हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य 30.44 दिन में अपना राशि परिवर्तन करता है उसे सौर संक्रांन्ति कहते हैं। एक सौर संक्रांन्ति से दूसरी सौर संक्रांन्ति तक का समय सौर मास कहलाता है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है। किन्तु हिन्दू पद्धति के अनुसार चंद्रमा की चाल से मास का निर्धारण किया गया है अर्थात एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक अथवा एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक। इसे चंद्र मास कहते हैं। एक चंद्र मास में लगभग 29.53 दिन होते हैं अतः चंद्र वर्ष में 354.32 दिन होते हैं। इस प्रकार चंद्र वर्ष में सौर वर्ष से 10.87 दिन काम होते है और तीन वर्ष में यह अंतर १ माह का को जाता है इस असमानता को दूर करने के लिए ज्योतिष एवं खगोल शास्त्रियों ने हर चौथे वर्ष हिन्दू कैलेंडर में १ मास जोड़ने की विधि का विकास किया।
पुरुषोत्तम नाम कैसे मिला?
शास्त्रों के अनुसार इसकी एक रोचक कथा है। कथा के अनुसार प्रत्येक मास के कोई ना कोई देवता या स्वामी हैं पर मलमास मास का कोई स्वमी नहीं होता। इससे दुखी हो कर मलमास बहुत उदास रहता था। वह एक दिन विष्णुलोक पहुँचा और भगवान विष्णु से अनुरोध किया कि सभी मास का कोई न कोई स्वमी है। एक मैं ही भाग्यहीन हूँ जिसका कोई भी स्वमी नहीं है और ना ही कोई सहारा जिसके कारण इस सृष्टी मे सभी ने मेरा अनादर किया और वे समस्त मेरी अवधि में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य संपन्न नही करते| आप दयानिधान है| में शरणावत हूँ, हे पुरुषोत्तम! अब एक आप ही का सहारा है, आप मुझे मुक्ति दीजिये|
इसे भी पढ़ें : Vishwakarma Puja 2020: भगवान विश्वकर्मा पूजा, जानें उनकी रोचक जन्म कथा
अधिक मास की इस करुणा मयी प्रार्थना को सुनकर भगवान विष्णु बोले ‘हे मलमास मेरे अंदर जितने भी सद्गुण हैं वह मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हूं और मेरा विख्यात नाम ‘पुरुषोत्तम’ मैं तुम्हें दे रहा हूं और तुम्हारा मैं ही स्वामी हूँ ।‘ तभी से मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास हो गया और भगवान श्री हरि की कृपा से ही इस मास में भगवान का कीर्तन, भजन, दान-पुण्य करने वाले मृत्यु के पश्चात् श्री हरि धाम को प्राप्त होते हैं।
अधिक मास में क्या करें और क्या ना करें?
अधिक मास में न करें
यस्मिन चांद्रे न संक्रान्ति: सो अधिमासो निगह्यते
तत्र मंगल कार्यानि नैव कुर्यात कदाचन्।
मलमास को मलिन माना गया है जिस कारण शास्त्रों के अनुसार इस माह में कुछ कार्यों को करना निषेध कहा गया है। अधिक मास के दौरान स्थापना, विवाह, मुंडन, नव वधु गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, नामकरण, अष्टका श्राद्ध जैसे संस्कार व कर्म करने की मनाही है तो साथ ही कुछ नया पहनना वस्त्रादि, नई खरीददारी करना वाहन आदि का भी निषेध माना जाता है।
अधिक मास में करें
अधिक मास के स्वामी भगवान विष्णु हैं इसलिए इस माह में श्री हरि का पूजन और विष्णु मंत्रो का जाप अत्यधिक फलदायी होता है। पौराणिक कथाओ के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण सुनना, और पढ़ना विशेष रूप से फलदायी होता है। मान्यता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने से भक्तो को भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होकर उनकी समस्त इच्छाएं पूरी होती हैं।
ये भी पढ़ें : Brahma Muhurta| ब्रह्म मुहूर्त : जाने महत्व
अधिक मास 2020
इस वर्ष अधिक मास 17 सितम्बर से प्रारम्भ हो कर 16 अक्टूबर तक रहेगा। इस वर्ष का अधिक मास आश्विन अधिक मास है मतलब इस वर्ष दो आश्विन मास हैं। यह 19 वर्ष बाद आया है और अगला आश्विन अधिक मास 19 वर्ष बाद 2039 को आएगा।
इस आश्विन अधिक मास के कारण श्राद्ध के बाद आने वाले सभी त्यौहार 20 से 25 दिन के विलंभ से आएँगे। अधिक मास के चलते शारदीय नवरात्र और पितृपक्ष के बीच 1 माह का अंतर है। दशहरा 26 अक्टूबर और दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी।
Discussion about this post