लोकप्रिय धारणा के अनुसार कार्तिक माह के दौरान देवता आंवले के पेड़ पर वास करते हैं। आंवले का पेड़ पौराणिक काल से ही व्यक्तियों के पापों को दूर करने के लिए व्यापक रूप से प्रसिद्ध है। आंवला नवमी के दिन, भक्त आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं ताकि उनकी पूजा सीधे पेड़ पे विराजित देवी-देवताओं के पास पहुँचे और उनके आशीर्वाद से अपने अतीत और वर्तमान के पापों से छुटकारा पा सकें।
आंवला नवमी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। यह पूजा अति फलदायी होती है, ऐसी मान्यता है की इस पूजा को देखने मात्र से ही अक्षय फल प्राप्त होता है। इसी कारण आंवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है।
आंवला नवमी/ अक्षय नवमी 2020
दिनांक: 23 नवम्बर 2020
नवमी तिथि प्रारम्भ : 22 नवम्बर 2020 को 10:51 पी एम बजे
नवमी तिथि समाप्त : 24 नवम्बर 2020 को 12:32 ए एम बजे
पूजा शुभ मुहूर्त : 06:50 ए एम से 12:08 पी एम
अवधि : 05 घण्टे 17 मिनट्स
सबसे पहले किसने की आंवला नवमी की पूजा?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वीलोक पर भ्रमण करने आई। पृथ्वी पर आकर उनके मन में भगवान विष्णु और भोलेनाथ की एक साथ पूजा करने की कामना हुई। लेकिन भगवान विष्णु और भोलेनाथ का एक साथ पूजन करना एक कठिन कार्य था, तो माता लक्ष्मी को स्मरण हुआ की नारायण को तुलसी अति प्रिय है और शिव को बेल पत्र बहुत पसंद है। तब उन्होंने पाया कि पृथ्वी पर एक ऐसा वृक्ष है जिस में तुलसी और बेल की गुणवत्ता एक साथ पायी जाती है।
तब माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर आंवले के पेड़ की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर दोनो भगवान विष्णु और शिव एक साथ प्रकट हुए। तब लक्ष्मी माता ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन तैयार किया और उसे केशव और भोलेनाथ को परोसा। इसके बाद उन्होंने भोजन को खुद भी ग्रहण किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है और कहा जाता है कि इसी कारण आज भी कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करते है और माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु और भोलेनाथ को प्रसन्न किया जाता है।
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आंवला नवमी का महत्व
आंवला नवमी के दिन आंवला पूजा करने के लाभों का उल्लेख स्कंद पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। महा विष्णु पुराण में, भगवान विष्णु ने आंवले को दिव्य फल घोषित किया है और इसलिए भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, भक्त विशेष रूप से, महिलाएं आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं और साथ ही पेड़ के नीचे पवित्र भोजन तैयार करती हैं। आंवले के बारे में उल्लेख मिलता है कि इसका सेवन करने मात्र से ही श्री हरि प्रसन्न होते हैं। माना जाता है जहां पर आंवला का वृक्ष होता है वहां विष्णु जी का वास होता है। आंवले में उच्च मात्रा में चिकित्सीय और औषधीय महत्व होता है और इसलिए यह आयुर्वेद में व्यापक रूप से लोकप्रिय है।
माना जाता है की अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग प्रारम्भ हुआ था। इसी दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्ड दैत्य का वध किया था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल उत्पन्न हुई। इसी कारण कुष्माण्ड (कदीमा या कद्दू) का दान करने से उत्तम फल मिलता है।
आंवला नवमी पूजा विधि
आंवला नवमी के दिन भक्तों को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करना चाहिए और अपने पास स्थित किसी भी आंवले के पेड़ के पास जाना चाहिए और उस स्थान पर सफाई करनी चाहिए। इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा में खड़े होकर जल और दूध चढ़ाएं। इसके बाद पूजा आदि करने के बाद पेड़ के चारों ओर रुई लपेटें और परिक्रमा करें। अंत में, आंवले की आरती उतारें और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें।
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आंवला नवमी पर जरूर करें ये 5 उपाय
आंवला नवमी के दिन ब्राह्मण व जरूरतमंदों को भोजन जरूर करवाएं।
आंवला नवमी पर जरूर करें दान।
भगवान विष्णु को आंवला करें भेंट।
आंवला वृक्ष के नीचे खाना बनायें और वहीं बैठकर खाएं।
अक्षय नवमी पर शुभ होता है सोना-चांदी खरीदना।
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