गणेश जी को रिद्धि-सिद्धि के देवता है।गणेश जी विघ्न हारता व शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। अगर कोई भक्त उनकी सच्चे मन से वंदना करता है, तो लंबोदर तुरंत प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
वैसे भी गणेश जी जिस स्थान पर निवास करते हैं, उनकी दोनों पत्नियां ऋद्धि तथा सिद्धि भी उनके साथ रहती हैं। उनके दोनों पुत्र शुभ व लाभ का आगमन भी गणेश जी के साथ ही होता है। कभी-कभी तो भक्त भगवान को असमंजस में डाल देते हैं। पूजा-पाठ व भक्ति का जो वरदान मांगते हैं, वह निराला होता है।
गणेश जी को कैसे ठगा एक बुढ़िया ने
काफ़ी समय पहले की बात है एक गांव में एक अंधी बुढ़िया रहती थी। वह गणेश जी की परम भक्त थी। आंखों से भले ही दिखाई नहीं देता था, परंतु वह सुबह शाम गणेश जी की भक्ति में मग्न रहती। नित्य गणेश जी की प्रतिमा के आगे बैठकर उनकी स्तुति करती। भजन गाती व समाधि में लीन रहती। गणेश जी बुढ़िया की निष्काम भक्ति से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा यह बुढ़िया नित्य मेरा स्मरण करती है, परंतु बदले में कभी कुछ नहीं मांगती।
इसे इसकी भक्ति का फल तो अवश्य मिलना ही चाहिए। ऐसा सोचकर गणेश जी एक दिन बुढ़िया के सम्मुख प्रकट हुए तथा बोले- ‘माई, तुम मेरी सच्ची भक्त हो। जिस श्रद्धा व विश्वास से तुम मीरास स्मरण करती हो, उससे मैं अति प्रसन्न हूँ। अत: तुम जो वरदान चाहो मांग सकती हो।’
बुढ़िया बोली- ‘प्रभो! मैं तो आपकी भक्ति प्रेम भाव से करती हूं। मांगने का तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। अत: मुझे कुछ नहीं चाहिए।’ गणेश जी पुन: बोले- ‘मैं वरदान देने केलिए ही आया हूँ।’ बुढ़िया बोली- ‘हे सर्वेश्वर, मुझे मांगना तो नहीं आता। अगर आप कहें, तो मैं कल मांग लूंगी। तब तक मैं अपने बेटे व बहू से भी सलाह कर लूंगी। गणेश जी कल आने का वादा करके वापस लौट गए।
बुढ़िया का एक शादी शुदा पुत्र था। बुढ़िया ने सारा घटना क्रम अपने पुत्र और बहू को बताकर सलाह मांगी। बेटा बोला- ‘मां, तुम गणेश जी से ढेर सारा पैसा मांग लो। हमारी ग़रीबी दूर हो जाएगी। सब सुख चैन से रहेंगे।’ बुढ़िया की बहू बोली- ‘नहीं आप एक सुंदर पोते का वरदान मांगें। वंश को आगे बढ़ाने वाला भी, तो चाहिए।’ बुढ़िया बेटे और बहू की बातें सुनकर असमंजस में पड़ गई।
उसने सोचा- यह दोनों तो अपने-अपने मतलब की ही सलाह दे रहे हैं। बुढ़िया ने पड़ोसियों से सलाह लेने का मन बनाया। पड़ोसन एक नेक दिल महिला थी। उसने बुढ़िया को समझाते हुए कहा “तुम अपने अभी तक के जीवन में बहुत दुखी रही हो। अब जो थोड़ा जीवन बचा है, वह तो गणेश जी की कृपा से सुख से व्यतीत हो। धन अथवा पोते का तुम क्या करोंगी! अगर तुम्हारी आंखें ही नहीं हैं, तो यह संसारिक वस्तुएं तुम्हारे लिए व्यर्थ हैं। अत: तुम अपने लिए दोनों आंखें मांग लो।“
बुढ़िया को पड़ोसन का सुझाव सुन और भी सोच में पड़ गई। उसने सोचा- मैं कुछ ऐसा मंगू, जिससे मेरा, और मेरे परिवार का भला हो। लेकिन ऐसा क्या हो सकता है? इसी उधेड़बून में सारा दिन व्यतीत हो गया। बुढ़िया कभी कुछ मांगने का मन बनाती, तो कभी कुछ। परंतु कुछ भी निर्धारित न कर सकी।
दूसरे दिन गजानन जी पुन: प्रकट हुए तथा बोले- ‘आप जो भी मांगेंगे, वह मेरी कृपा से पूर्ण हो जाएगा। यह मेरा वचन है।’ गणेश जी के पावन वचन सुनकर बुढ़िया बोली- ‘हे गौरी पुत्र, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो कृप्या मुझे मन इच्छित वरदान दीजिए। मैं अपने पोते को सोने के गिलास में दूध पीते देखना चाहती हूं।’
बुढ़िया की बातें सुनकर विघ्न हारता उसकी मनोकामना पर मुस्कुरा दिए। बोले- ‘माई तुमने तो मुझे ठग ही लिया है। मैंने तुम्हें एक वरदान मांगने के लिए बोला था, परंतु तुमने तो एक वरदान में ही सबकुछ मांग लिया।“अष्टविनायक मंदिरों के दर्शन, मिलेगा विघ्नहर्ता का आर्शिवाद
तुमने अपने लिए लंबी उम्र तथा दोनों आंखे मांग ली। बेटे के लिए धन व बहू के लिए पोता भी मांग लिया। पोता होगा और ढेर सारा पैसा होगा, तभी तो वह सोने के गिलास में दूध पीएगा। पोते को देखने के लिए तुम जिंदा रहोगी, तभी तो देख पाओगी। अब देखने के लिए दो आंखें भी देनी ही पड़ेंगी।’ फिर भी वह बोले- ‘जो तुमने मांगा, वे सब सत्य होगा।’ यूं कहकर गणेश जी अंर्तध्यान हो गए।
कुछ समय पश्चात गणेश जी की कृपा से बुढ़िया के घर पोता हुआ। बेटे का कारोबार चल निकला तथा बुढ़िया की आंखों की रौशनी वापस लौट आई। बुढ़िया अपने परिवार सहित सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी।
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