हिन्दू धर्म में एकादशी (Ekadashi) तिथि का दिन धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में 2 एकादशी होती है और एक वर्ष में 24 एकादशियाँ आती है परंतु जिस वर्ष अधिक मास होता है उस वर्ष इनकी संख्या 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशियां तो बहुत ही खास मानी जाती हैं। हालांकि समस्त एकादशियों में ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं सर्वोत्तम मानी जाती है लेकिन ज्येष्ठ महीने की ही कृष्ण एकादशी भी कमतर नहीं मानी जा सकती। इस एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहा जाता है। इस दिन के व्रत की बहुत महत्ता है। आइये इस लेख में जानते हैं अपरा एकादशी(Apara Ekadashi 2022) का महत्व, व्रत कथा व पूजा विधि…….
अपरा एकादशी व्रत २०२२ – Apara Ekadashi 2022
दिनांक : 26 मई 2022
वार : बृहस्पतिवार
एकादशी तिथि प्रारम्भ – 25 मई 2022 को 10:32 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 26 मई 2022 को 10:54 ए एम बजे
पारण तिथि : 27 मई 2022
पारण समय : 05:25 ए एम से 08:10 ए एम
(पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 11:47 ए एम)
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अपरा एकादशी का महत्व (Significance of Apara Ekadashi 2022)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- “हे प्रभु! ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसका माहात्म्य क्या है? इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है तथा इस व्रत को करने का क्या विधान है? कृपा कर यह सब मुझे विस्तारपूर्वक बतायें।”
श्रीकृष्ण ने कहा- “हे धर्मराज! ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा है, क्योंकि यह अपार धन और पुण्यों को देने वाली तथा समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य इसका व्रत करते हैं, उनकी लोक में प्रसिद्धि होती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्महत्या, प्रेत योनि, दूसरे की निन्दा आदि से उत्पन्न पापों का नाश हो जाता है, इतना ही नहीं, स्त्रीगमन, झूठी गवाही, असत्य भाषण, झूठा वेद पढ़ना, झूठा शास्त्र बनाना, ज्योतिष द्वारा किसी को भरमाना, झूठा वैद्य बनकर लोगो को ठगना आदि भयंकर पाप भी अपरा एकादशी के व्रत से नष्ट हो जाते हैं।
युद्धक्षेत्र से भागे हुए क्षत्रिय को नरक की प्राप्ति होती है, किन्तु अगर वो अपरा एकादशी का व्रत करते हैं तो उन्हें भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। गुरू से विद्या अर्जित करने के उपरान्त जो शिष्य गरु की निन्दा करते हैं तो वे अवश्य ही नरक में जाते हैं। अपरा एकादशी का व्रत करने से इनके लिये स्वर्ग जाना सम्भव हो जाता है।
तीनों पुष्करों में स्नान करने से या कार्तिक माह में स्नान करने से अथवा गंगाजी के तट पर पितरों को पिण्डदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है।
बृहस्पति के दिन गोमती नदी में स्नान करने से, कुम्भ में श्रीकेदारनाथजी के दर्शन करने से तथा बदरिकाश्रम में रहने से तथा सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो फल सिंह राशि वालों को प्राप्त होता है, वह फल अपरा एकादशी के व्रत के समान है। जो फल हाथी-घोड़े के दान से तथा यज्ञ में स्वर्णदान (सुवर्णदान) से प्राप्त होता है, वह फल अपरा एकादशी के व्रत के फल के बराबर है। गौ तथा भूमि या स्वर्ण के दान का फल भी इसके फल के समान होता है।
पापरूपी वृक्षों को काटने के लिये यह व्रत कुल्हाड़ी के समान है तथा पापरूपी अन्धकार के लिये सूर्य के समान है। अतः मनुष्य को इस एकादशी का व्रत अवश्य ही करना चाहिये। यह व्रत सब व्रतों में उत्तम है। अपरा एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान श्रीविष्णु का पूजन करना चाहिये। जिससे अन्त में विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
अपरा एकादशी कथा (Legend of Apara Ekadashi)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर वज्रध्वज ने राजा महीध्वज की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।
ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
अपरा एकादशी व्रत विधि ( Vrat Vidhi of Apara Ekadashi)
- एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह ब्रह्म मुहूर्त में निद्रा से उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करे।
- उसके बाद घर के मंदिर में पूजा करने से पहले एक वेदी बनाकर उस पर 7 धान (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें।
- वेदी के ऊपर एक कलश की स्थापना करें और उसमें आम या अशोक के 5 पत्ते लगाएं।
- वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें।
- इसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें। फिर धूप-दीप से विष्णु जी की आरती उतारें।
- शाम के समय भगवान विष्णु की आरती के बाद फलाहार ग्रहण करें।
- रात्रि के समय सोए नहीं बल्कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- अगले दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं इसके बाद खुद भी भोजन करें।
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