भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) की लीलाओं से तो हर भक्त वाकिफ है और उनके बड़े भाई बलराम (Balrama) के बारे में भी लोग जानते हैं। बलराम दाऊ (Balram) को शेषनाग (Sheshnag) का अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु शेषनाग की शैया पर शयन करते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु के हर अवतार के साथ शेषनाग का भी अवतार(Balaram Jayanti ) हुआ है और हर अवतार में वे सदा विष्णु के के साथ रहे। इसी तरह द्वापर युग में भी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से दो दिन पूर्व बलराम जी का जन्म हुआ था।
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष भाद्रपद्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जी के जन्मोत्सव या बलराम जयंती (Balaram Jayanti) के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं अनुसार जब-जब धरती पर अधर्म बड़ा है तब-तब भगवान विष्णु ने अवतार लिया है और उनका साथ किसी न किसी रूप में शेषनाग ने दिया है। द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म से पहले उनके शेषनाग ने बलराम के रुप में जन्म लिया। बलराम जंयती को हलषष्ठी और हलछठ के नाम से भी जाना जाता है।
Balaram Jayanti 2022 – शुभ मुहूर्त
जन्माष्टमी से दो दिन पहले यानी आज बुधवार, 17 अगस्त 2022 को बलराम जयंती मनाई जायेगी।
बलराम जयंती का महत्व ( Significance Of Balaram Jayanti)
इस दिन कई स्त्रियां व्रत रखती है। संतान प्राप्ति की इच्छुक महिलाओं के लिए ये व्रत फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले जातक को पूरे दिन निराहार रहना होता है और फिर शाम के समय पूजा करने के बाद फलहार ग्रहण कर सकते हैं। इस जयंती के दिन धरती से पैदा हुए अन्न को ग्रहण किया जाता है। साथ ही कई जगह लोग इस दिन पर दूध और दही का सेवन नहीं करते हैं।
बलराम जयंती पूजा विधि
बलराम जयंती पर व्रत रखने वाली महिलाओं को महुआ के दातुन से दांत साफ करना होता है। बलराम जंयती पर महिलाएं तालाब के किनारे या घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं। फल का प्रसाद चढ़ाने के बाद कथा सुनी जाती है। इस दिन गणेश जी और माता गौरा की पूजा होती है।
बलराम जयंती की कथा( Legend Of Balaram Jayanti)
जब कंस को पता चला की वासुदेव और देवकी की संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी तो उसने उन्हें कारागार में डाल दिया और उनकी सभी 6 जन्मी संतानों का वध कर डाला। देवकी को जब सांतवा पुत्र होना था तब उनकी रक्षा के लिए नारद मुनी ने उन्हे हलष्ठी माता की व्रत करने की सलाह दी। जिससे उनका पुत्र कंस के कोप से सुरक्षित हो जाए। देवकी ने हलष्ठी का व्रत किया। जिसके प्रभाव से भगवान ने योगमाया से कह कर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को वासुदेव की बड़ी रानी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जिससे कंस को भी धोखा हो गया और उसने समझा देवकी का संतवा पुत्र जिंदा नहीं हैं। उधर रोहिणी के गर्भ से भगवान बलराम का जन्म हुआ। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रुप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। देवकी के व्रत करने से दोनों पुत्रों की रक्षा हुई।
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