श्री कुबेर महामुनि विश्रवा के पुत्र थे। कुबेर जी का जन्म विश्रवा की प्रथम पत्नी इलवती के गर्भ से हुआ था, जबकि उनकी दूसरी पत्नी कैकसी के गर्भ से रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का जन्म हुआ था। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार माँ लक्ष्मी धन की देवी हैं उसी तरह कुबेर देव को धन का देवता माना गया है। ये देवताओं के भी कोषाध्यक्ष है और इस संसार में जो भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ऐश्वर्य है उन सभी के अधिष्ठाता देव कुबेर को कहा गया है।
भारत और पूरे विश्व में हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्यौहार दीपावली के पाँच दिवसीय पर्व का शुभ आरंभ धनतेरस से होता है। धनतेरस के दिन माँ लक्ष्मी , श्री गणेश और कुबेर देव की पूजा की जाती है। जो भक्त कुबेर देव की पूजा पूरे विधि-विधान से करता है उसको उदारता, सौम्यता, शांति और तृप्ति की प्राप्ति होती है। उस भक्त के लिए कुबेर देव अपने ख़ज़ाने के द्वार खोल देते है जिससे उसे कभी भी धन समस्याओं का सामना नही करना पड़ता है।
धनतेरस 2021 तिथि और शुभ मुहूर्त – Dhanteras 2021
दिनांक: 02 नवम्बर 2021
वार : मंगलवार
धनतेरस पूजा मुहूर्त : 06:17 पी एम से 08:11 पी एम
प्रदोष काल : 05:35 पी एम से 08:11 पी एम
वृषभ काल : 06:17 पी एम से 08:12 पी एम
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ : 02 नवम्बर 2021 को 11:31 ए एम बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 03 नवम्बर 2021 को 09:02 ए एम बजे
धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल में किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है।
कुबेर देव की पूजा विधि
श्री कुबेर की मूर्ति है तो वह पूजा में उपयोग की जा सकती है। अगर आपके पास कुबेर की मूर्ति नहीं है तो आप तिजोरी या गहनों के बक्से को श्री कुबेर का रूप मान कर उनकी पूजा करनी चहिये। तिजोरी, बक्से आदि की पूजा से पहले सिन्दूर से स्वस्तिक-चिह्न बनाना चाहिए और उस पर ‘मौली’ बाँधना चाहिये।
1.सर्व प्रथम निम्नलिखित मन्त्र द्वारा श्री कुबेर जी का ध्यान करें।
मनुज –ब्रह्मा –विमान –स्थितम,
गरुड़ –रत्न –निभं निधि –नायकम।
शिव –सखम मुकुटादि –विभूषिताम ,
वर –गड़े दधतं भजे तुन्दिलम ॥
अर्थात –मानव-स्वरूप विमान पर विराजमान, श्रेष्ठ गरुड़ के समान सभी निधियों के स्वामी, भगवान् शिव के मित्र, मुकुट आदि से सुशोभित और हाथों में वर-मुद्रा एवं गदा धारण करनेवाले भव्य श्रीकुबेर जी की मैं वन्दना करता हूँ।
2.भगवान कुबेर का ध्यान करते हुए उनकी मूर्ति या तिजोरी या गहनों के बक्से सम्मुख निम्न मन्त्र द्वारा उनका आवाहन करें।
आवाहयामि देव ! त्वामिहायाहि कृपाम कुरु ।
कोषम वर्ध्दन्या नित्यं , तवं परी–रक्ष सुरेश्वर ॥
॥ श्री कुबेर –देवम आवाहयामि ॥
अर्थात – हे देव, सुरेश्वर! मैं आपका आवाहन करता हूँ। आप कृपा कर यहाँ पधारें और सदा मेरे भण्डार की वृद्धि करें और रक्षा करें और कहें:
॥मैं श्रीकुबेर देव का आवाहन करता हूँ॥
3.आवाहन करने के उपरांत निम्न मन्त्र पढ़कर श्रीकुबेर देव के आसन के लिए पाँच पुष्प अञ्जलि( हथेलियों पर बनाया गया गड्ढा) में लेकर अपनेसामने श्री कुबेर की मूर्ति अथवा तिजोरी-बक्से आदि के निकट छोड़े।
नाना –रत्न –समायुक्तं कर्त्य –स्वर –विभूषिताम ।
आसनं देव –देवेश ! प्रीत्यर्थं प्रति -गृह्यताम ॥
॥ श्री कुबेर -देवाय आसनार्थे पंचा -पुष्पाणि समर्पयामि ॥
अर्थात- हे देवताओं के ईश्वर! विविध प्रकार के रत्न से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण करें और और कहें:
॥भगवान् श्रीकुबेर के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ॥
4.इसके बाद ‘चन्दन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य’ से भगवान् श्रीकुबेर का पूजन निम्न मन्त्रों द्वारा करें।
ॐ श्री कुबेराय नमः पद्यों पद्यम समर्पयामि ।
ॐ श्री कुबेराय नमः शिरसि अर्घ्यम समर्पयामि ।
ॐ श्री कुबेराय नमः गन्धाक्षतं समर्पयामि ।
ॐ श्री कुबेराय नमः पुष्पम समर्पयामि ।
ॐ श्री कुबेराय नमः धूपं घ्रापयामि ।
ॐ श्री कुबेराय नमः दीपम दर्शयामि ।
ॐ श्री कुबेराय नमः नैवेद्यम समर्पयामि ।
ॐ श्री कुबेराय नमः आचमनीयं समर्पयामि ।
ॐ श्री कुबेराय नमः ताम्बूलं समर्पयामि ।
5.बतायी गयी विधि से पूजन करने के बाद बाएँ हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प लेकर दाहिने हाथ द्वारा निम्न मन्त्र पढ़ते हुए श्री कुबेर जी की मूर्ति ‘यातिजोरी-बक्से’ आदि पर छोड़े।
ॐ श्री कुबेराय नमः ।
अनेन पूजने श्री धनाध्यक्ष -श्री कुबेर प्रियतम ।
नमो नमः ।
अर्थात – श्री कुबेर को नमस्कार! इस पूजन से श्रीकुबेर भगवान् प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार।
।।अब कुबेर जी की आरती करें।।
ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे,स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के,भण्डार कुबेर भरे ।। ॐ।।
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े,स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से,कई-कई युद्ध लड़े ।। ॐ।।
स्वर्ण सिंहासन बैठे,सिर पर छत्र फिरे, स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
योगिनी मंगल गावैं,सब जय जय कार करैं ।। ॐ।।
गदा त्रिशूल हाथ में,शस्त्र बहुत धरे, स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
दख भय संकट मोचन,धनुष टंकार करें ।। ॐ।।
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने,स्वामी व्यंजन बहुत बने।
मोहन भोग लगावैं,साथ में उड़द चने ।। ॐ।।
बल बुद्धि विद्या दाता,हम तेरी शरण पड़े, स्वामी हम तेरी शरण पड़े
अपने भक्त जनों के,सारे काम संवारे ।। ॐ।।
मुकुट मणी की शोभा,मोतियन हार गले, स्वामी मोतियन हार गले।
अगर कपूर की बाती,घी की जोत जले ।। ॐ।।
यक्ष कुबेर जी की आरती,जो कोई नर गावे, स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत प्रेमपाल स्वामी,मनवांछित फल पावे ।। ॐ।।
॥ इसके साथ श्री-कुबेर पूजा समाप्त हुयी ॥
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