हल षष्ठी/ हल छठ की पूजा का हिन्दू पर्व में बहुत अधिक महत्व हैं | आमतौर पर यह उत्तर भारत में मनाया जाता हैं | यह व्रत पुत्रवती स्त्रियाँ अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए करती हैं | यह हर छठ का व्रत बहुत नियम कायदों के साथ किया जाता हैं|
संबंधित अन्य नाम भी प्रचलित हैं।
कब मनायी जाती हैं या बलराम जयंती?
हल छठ का त्यौहार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता हैं, कुछ लोग हल छठ का त्यौहार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाते हैं | महिलायें अपने पुत्र की रक्षा के लिए यह त्यौहार बड़े उत्साह के साथ पुरे विधि विधान से करती हैं |
हल षष्ठी 2022 – Hal Shashthi 2022
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष 2022 में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 16 अगस्त, मंगलवार को रात 08.19 से शुरू होगी और 17 अगस्त, बुधवार रात 09.21 मिनट तक रहेगी। 17 अगस्त को उदया तिथि होने के चलते आज हल षष्ठी का व्रत किया जाएगा। इस पूरे दिन हल षष्ठी की पूजा की जा सकेगी।
हल षष्ठी व्रत और पूजा सामग्री(Hal Shashthi 2022 Puja Samagri)
- भेंस का दूध, घी, दही गोबर।
- महुये का फल, फुल एवम पत्ते
- जवार की धानी
- ऐपन
- कुल्वे (छोते से मिट्टी के कुल्हड़)
- देवली छेवली (बांस और महुये के पत्ते से बना होते हैं।)
- कुशा
इस विधि से करें हल षष्ठी व्रत और पूजा (Hal Shashthi 2022 Puja Vidhi)
प्रातः काल उठकर महुयें से दांत साफ़ किये जाते हैं| इस दिन बिना हल से जूते खाद्य पदार्थ खाये जाते हैं | पसई धान के चावल, भेंस के दूध का उपयोग भोजन में किया जाता हैं | भोजन पूजा के बाद किया जाता हैं | यह व्रत पुत्रवती स्त्रियाँ ही करती हैं | इस व्रत की पूजा हेतु भेंस के गोबर से पूजा घर में घर की दिवार पर हर छठ माता का चित्र बनाया जाता हैं | एपन तैयार किया जाता हैं | उससे चित्र का श्रृंगार किया जाता हैं |
ऐपन (चित्र)बनाने की विधि : पूजा के चावल को पानी में भीगा कर रखा जाता हैं | फिर उसे सिल बट्टे पर पिस कर उसमे हल्दी मिलाई जाती हैं | एक लेप की तरह घोल तैयार होता हैं उसे ऐपन कहते हैं | इस चित्र में हल, सप्त ऋषि, पशु ,किसान मान्यतानुसार कई चित्र बनाये जाते हैं | कई परिवार केवल हाथों के छापे बनाकर उनकी पूजा करते हैं |हाथो में ऐपन लगाकर उसके छापे दीवार पर बनाकर उनकी पूजा की जाती हैं |
पूजा के लिए पाटे पर कलश सजाया जाता हैं | गणेश जी एवम माता गौरा को स्थापित किया जाता हैं | साथ ही मिट्टी के कुल्वे में ज्वार की धानी एवम महुआ का फल भरा जाता हैं | एक मटकी में देवली छेवली को रखा जाता हैं | सबसे पहले कलश की पूजा कर गणेश जी एवम माता गौरा की पूजा की जाती हैं | फिर हर छठ माता की पूजा की जाती हैं | उसके बाद कुल्वे एवम मटकी की पूजा की जाती हैं |
पूजा के बाद हर छठ की कथा पढ़ी जाती हैं | माता जी की आरती की जाती हैं | आरती के बाद वही बैठकर महुयें के पत्ते पर महुये का फल रख कर उसे भेस के दूध से बने दही के साथ खाया जाता हैं | पूजा के बाद व्रत पूरा करने हेतु भोजन में पसई धान के चावल एवम भेंस के दूध से बनी वस्तुयें खाई जाती हैlभाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था।
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