Kajari Teej 2022: कजरी तीज को कजली तीज, बडी तीज और सातुडी तीज के नाम से भी जाना जाता है, यह मुख्य रूप से पूर्वी भारत में भाद्रपद(भादो) माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला प्रसिद्द त्यौहार है। कई जगह इसे बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. हरियाली तीज या हरतालिका तीज की तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है. विवाहित महिलाएं ये व्रत अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं और इस दिन परंपरागत रूप से कजरी गीत गाती हैं.
कजरी तीज का महत्व ( significance Of Kajari Teej )
हरियाली तीज, हरतालिका तीज की तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं द्धवारा किया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार माना जाता है. कजरी तीज पूरे साल मनाए जाने वाले तीन तीज त्योहारों में से एक है। अखा और हरियाली तीज की तरह विवाहित महिलायें कजरी तीज के लिए भी विशेष तैयारी करती हैं। ऐसा माना जाता है आज ही के दिन मां पार्वती ने भगवान शिव को अपनी कठोर तपस्या से प्राप्त किया था. 108 जन्म लेने के बाद देवी पार्वती भगवान शिव से शादी करने में सफल हुई. इसीलिए इस दिन को निस्वार्थ प्रेम के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। यह निस्वार्थ भक्ति ही थी जिसने भगवान् शिव को अंततः देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने के लिए बाध्य किया. इस दिन अगर महिलाएँ संयुक्त रूप से भगवान शिव और पार्वती की उपासना करती हैं तो कुंवारी कन्याओं को अच्छा वर प्राप्त होता है और सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती होने का वरदान मिलता है.
कजरी तीज की कथा ( Legend Of Kajari Teej )
पौराणिक कथा के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था, जो राजा दादूरै के क्षेत्र में पड़ता था। इस वन में राजा अपनी रानी के साथ विहार करने आया करते थे, और यह वन उनके प्रेम का गवाह था। लोग इस वन के नाम पर कजरी गीत गाया करते थे, धीरे धीरे यह गीत दूर-दूर तक फैलने लगा। कुछ समय पश्चात् राजा की मृत्यु हो गयी, और रानी उसकी चिता में सती हो गयी। उन दोनों के अमर प्रेम के कारण वहां के लोग कजरी के गाने पति-पत्नी के प्रेम के प्रतीक के रूप में गाने लगे।
इसके अलावा माता पार्वती और शिव जी की कथा भी तीज मनाने का मुख्य कारण है। जिसके अनुसार माता पार्वती ने शिव जी को प्राप्त करने हेतु 108 वर्ष तक कड़ी तपस्या की थी, और शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया था। उन्होंने प्रसन्न होकर पार्वती जी को यह वरदान भी दिया की इस दिन जो भी स्त्री व्रत रखेगीऔर इस कथा को सुनेगी और सुनाएगी, उसे सौभाग्वती होने का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
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कजरी तीज 2022 पूजा समय (Kajari Teej Puja Samay 2022)
कजरी तीज – रविवार, अगस्त 14, 2022
तृतीया तिथि प्रारम्भ – अगस्त 14, 2022 को 12:53 ए एम बजे से
तृतीया तिथि समाप्त – अगस्त 14, 2022 को 10:35 पी एम बजे तक
कजरी तीज की पूजा विधि
कजरी तीज के अवसर पर नीमड़ी माता की पूजा करने का विधान है। पूजन से पहले मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है (घी और गुड़ से पाल बांधकर) और उसके पास नीम की टहनी को रोप देते हैं। तालाब में कच्चा दूध और जल डालते हैं और किनारे पर एक दीया जलाकर रखते हैं। थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि रखे जाते हैं। इसके अलावा लोटे में कच्चा दूध लें और फिर शाम के समय शृंगार करने के बाद नीमड़ी माता की पूजा इस प्रकार करें..
- सर्वप्रथम नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और चावल चढ़ाएं।
- नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया अंगुली से लगाएं। मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए।
- नीमड़ी माता को मोली चढ़ाने के बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाएं। दीवार पर लगी बिंदियों के सहारे लच्छा लगा दें।
- नीमड़ी माता को कोई फल और दक्षिणा चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें।
- पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि देखें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें।
चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि
कजरी तीज पर संध्या के समय नीमड़ी माता की पूजा के बाद चांद को अर्घ्य देने की परंपरा है।
- चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मोली, अक्षत चढ़ायें और फिर भोग अर्पित करें।
- चांदी की अंगूठी और आखे (गेहूं के दाने) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य दें और एक ही जगह खड़े होकर चार बार घुमें।
कजरी तीज व्रत के नियम
- यह व्रत सामान्यत: निर्जला रहकर किया जाता है। हालांकि गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं।
- यदि चांद उदय होते नहीं दिख पाये तो रात्रि में लगभग 11:30 बजे आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोला जा सकता है।
- उद्यापन के बाद संपूर्ण उपवास संभव नहीं हो तो फलाहार किया जा सकता है।
उपरोक्त विधि-विधान के अनुसार कजरी तीज का व्रत रखने से सौभाग्यवती स्त्री के परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। वहीं कुंवारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती है।
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