काल भैरव जयंती को ‘महाकाल भैरवाष्टमी’ या ‘काल भैरव अष्टमी’ के रूप में भी जाना जाता है, भगवान शिव के भयावह अवतार, भगवान कालभैरव को समर्पित है। यह हर वर्ष मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी (आठवें दिन) को मनाया जाता है। काल भैरव को शिव जी के रुद्रअवतारों में से प्रमुख अवतार माना जाता है।
कालभैरव जयन्ती उत्तरी भारतीय पूर्णिमान्त पञ्चाङ्ग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में पड़ती है जबकि दक्षिणी भारतीय अमान्त पञ्चाङ्ग केअनुसार कार्तिक के महीने पड़ती है। हालाँकि दोनों पञ्चाङ्ग में कालभैरव जयन्ती एक ही दिन देखी जाती है। यह माना जाता है कि उसी दिनभगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे।
काल भैरव जयंती 2020 (Kalabhairav Jayanti)
दिनांक : 7 दिसम्बर 2020
वार : सोमवार
अष्टमी तिथि प्रारम्भ : 7 दिसम्बर 2020 को 06:47 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त : 8 दिसम्बर 2020 को 05:17 पी एम बजे
धार्मिक मूलग्रन्थ के अनुसार जिस दिन अष्टमी तिथि रात्रि के दौरान प्रबल होती है उस दिन व्रतराज कालाष्टमी का व्रत किया जाना चाहिए।
काल भैरव की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच इस बात को लेकर बहस हुई कि उनमें से कौन अधिक शक्तिशालीहै। लड़ाई इस स्तर तक पहुंच गई थी कि भगवान शिव को महान विद्वानों और संतों को एक समाधान खोजने के लिए आमंत्रित करना पड़ा। वेएक समाधान के साथ आए थे जिसे भगवान ब्रह्मा ने अस्वीकार कर दिया था। इससे भगवान शिव नाराज हो गए, क्योंकि यह उनका अपमान थाऔर उन्होंने विनाशकारी रूप धारण कर लिया। भगवान भैरव भगवान शिव के माथे से प्रकट हुए, जिन्होंने भगवान ब्रह्मा के एक सिर को काटदिया, जिससे उनके चार सिर हो गए। भगवान शिव को काल भैरव के रूप में देखकर देवता और ऋषि डर गए। भगवान ब्रह्मा ने काल भैरव सेमाफी मांगी। देवताओं, ऋषियों और भगवान ब्रह्मा द्वारा आश्वस्त होने के बाद, भगवान शिव अपने मूल स्वरूप में आ गए। काल भैरव एक हाथ मेंएक चड्डी के साथ एक काले कुत्ते की सवारी करते हैं। इसलिए, उन्हें ‘दंडादीपति’ के रूप में भी जाना जाता है।
अष्ट भैरव
हिन्दू धर्म ग्रंथो में काल काल भैरव के इन अवतारों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें अष्ट भैरव के नाम से भी जाना जाता है।
- असितांग भैरव
- रुद्र भैरव
- चंद्र भैरव
- क्रोध भैरव
- उन्मत्त भैरव
- कपाली भैरव
- भीषण भैरव
- संहार भैरव
कालभैरव जयन्ती पूजा विधि
- कालभैरव जयन्ती या कालाष्टमी की पूजा रात के समय ही की जाती हैं, क्योंकि भैरव को काल और तांत्रिकों का देवता माना गया है।
- कालाष्टमी की पूजा के लिए रात में परिवार संग, काल भैरव के लिए कीर्तन व जागरण करते हुए उनकी आराधना करें।
- इस दौरान बाबा भैरव के साथ ही, माता वैष्णो देवी और शिव-पार्वती जी की भी पूजा करना अनिवार्य होता है।
- रात्रि के बाद अगली सुबह सूर्योदय से पूर्व ही ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान, आदि कर साफ़ वस्त्र धारण करें।
- फिर समस्त परिवार के साथ, काल भैरव की कथा सुने और दूसरों को भी सुनाए।
- इसके बाद काल भैरव के मन्त्रों का जाप करें।इस दौरान मां बगलामुखी का अनुष्ठान भी करना शुभ माना गया है।
- पूजा के बाद श्रद्धा अनुसार, गरीबों को अन्न और वस्त्र दान करें और किसी काले कुत्ते को भोजन जरूर कराए।
- अगर संभव हो तो, कालाष्टमी के दिन काल भैरव के किसी मंदिर में जाकर, उनके समक्ष तिल के तेल या सरसों के तेल का एक दीपकजलाएं।
काल भैरव सिद्धि मंत्र
“ह्रीं बटुकाय अपुधरायणं कुरु कुरु बटुक्य ह्रीम्।”
“ओम हरे वम वटुकरासा आपुद्दुरका वतुकाया हरेम”
“ओम ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्षाम क्षिप्रपलाय काल भैरवाय नमः”
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