Karwa chauth 2021: हिन्दू धर्म में हर तिथि किसी न किसी भगवान या देवता को समर्पित होती है इसलिए हिन्दू धर्म में हर माह कोई ना कोई व्रत और त्यौहार आता है और इन विशेष तिथियों पर व्रत और उपवास का बहुत महत्व होता है। ऐसे ही हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो व्रत किया जाता है वह उत्तर भारत की विवाहित महिलाओं का महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को करवा चौथ कहते है।
करवा चौथ (Karwa chauth 2021) का शाब्दिक अर्थ है ‘करवा’ अर्थारत मिट्टी का बर्तन और चौथ अर्थारत माह का चौथा दिन। सुहागिने इस एक दिवसीय पर्व को उत्साह एवं श्रद्धा से मनाती है। इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक कठोर निर्जला व्रत रख कर अपने पति के जीवन की सुरक्षा तथा दीर्धायु सुनिश्चित करने के लिए प्रार्थना करती हैं। यद्यपि पूरे विश्व में हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोग इस पर्व को विधि पूर्वक धूमधाम से मनाते है लेकिन करवा चौथ मुख्यत: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान राज्यों में मनाया जाता है।
करवा चौथ 2021
इस वर्ष करवा चौथ के दिन पांच साल बाद फिर शुभ योग बन रहा है। इस बार करवा चौथ की पूजा रोहिणी नक्षत्र में की जयगी। इसके अलावा यह व्रत रविवार को होने से सूर्यदेव का शुभ प्रभाव भी इस व्रत पर पड़ेगा।
Karwa chauth 2021 date and time
दिनांक: 24 अक्टूबर 2021
वार: रविवार
करवा चौथ पूजा मुहूर्त – 05:43 पी एम से 06:59 पी एम (अवधि – 01 घण्टा 17 मिनट्स)
करवा चौथ व्रत समय – 06:27 ए एम से 08:07 पी एम (अवधि – 13 घण्टे 40 मिनट्स)
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय – 08:07 पी एम
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – 24 अक्टूबर 2021 को 03:01 ए एम बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त – 25 अक्टूबर 2021 को 05:43 ए एम बजे
करवा चौथ व्रत कथा
बहुत समय पहले एक शहर में एक साहूकार रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।
शादी के बाद वीरावती जब अपने मायके आयी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित हो गई।
सभी भाईयों से अपनी लाड़ली बहन की यह अवस्था सहन नहीं हो पा रही थी। उन्होंने वीरवती को भोजन करने को कहा पर वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण करने से मना कर दिया। तब सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में दीपक लेकर चढ़ गया। उसके बाकी सभी भाईयों ने अपनी लाड़ली बहन से कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर जा कर चन्द्रमा के दर्शन कर लेने चहिये।
वीरावती ने दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है। और दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहरा कर विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची। वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
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Karwa chauth के कुछ नियम हैं, जिनका पालन जरूर करना चाहिए:
1. इस व्रत में कहीं सरगी खाने का रिवाज है, तो कहीं नहीं है। इसलिए अपने परंपरा के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए। सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफ़ाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन(सरगी) करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
2. इस व्रत में महिलाओं को पूरा श्रृंगार करना चाहिए। इस व्रत में महिलाएं को मेहंदी से लेकर सोलह श्रृंगार करना चाहिए।
3. यह व्रत निर्जला रखा जाता है। परंतु हर जगह अपने-अपने रिवाजों के अनुसार व्रत रखा जाता है।
4. चन्द्रोदय के पश्चात, चंद्रमा के दर्शन कर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोला जाता है। करवों से पूजा : इस व्रत में मिट्टी के करवे लिए जाते हैं और उनसे पूजा की जाती है। इस व्रत के दौरान सुहागिने करवा चौथ की कथा सुनती व सुनाती है।
5. करवा चौथ की पूजा में भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय सहित नंदी जी की भी पूजा की जाती है।
6. पूजा के बाद चंद्रमा को छलनी से ही देखा जाता है और उसके बाद पति को भी उसी छलनी से देखते हैं।
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