कुंभ मेला ( Kumbh Mela) भारत में आयोजित किया जाने वाला सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। यह हिन्दू धर्म का एक महवपूर्ण सामूहिक तीर्थ या त्यौहार है, यहाँ पर हिन्दू बड़ी संख्या में इकट्ठा होते है और पवित्र नदी में स्नान किया जाता है। यह चार नदी तट पर स्थित तीर्थ स्थलों पर लगभग 12 वर्षों में मनाया जाता है: इलाहाबाद (गंगा-यमुना, सरस्वती नदियों का संगम), हरिद्वार (गंगा), नाशिक (गोदावरी), और उज्जैन (शिप्रा)। मेला प्रत्येक तीन वर्षो के बाद नासिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में बारी-बारी से मनाया जाता है। इस मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है।
कुंभ मेला कब मनाया जाता है? When is Kumbh Mela celebrated?
ज्योतिष के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारंभ होता है। जब सूर्य और चंद्रमा वृश्चिक राशि में प्रवेश कर, और वृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन होने वाले इस योग को कुंभ स्नान योग कहा जाता है। इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है।
कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है? Why Kumbh Celebrated?
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा के अभिशाप के कारण देवताओं ने अपने शक्ति खो दी, तो उनकी इस दुर्बलता का फायदा उठाते हुए असुरों ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को पराजित करके उन्हें स्वर्गलोक से निष्काषित कर दिया। तब इंद्र सहित सब देवतागण भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव के पास गए और उन से विनती की तब भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव ने विष्णु भगवान की प्रार्थना करने की सलाह दी, तब भगवान विष्णु ने फिर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी।
भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने की यन्त में लग गए। सागर मंथन करने के लिए भंडारा पर्वत को इस्तेमाल किया गया था।
सबसे पहले मंथन में विश उत्पन्न हुआ जो कि भगवान शिव द्वारा ग्रहण किया गया। जैसे ही मंथन में अमृत दिखाई पड़ा, तो देवता, शैतानों के गलत इरादे समझ गए, देवताओं के इशारे पर इंद्र पुत्र ‘जयंत’ अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ गये।
तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश पाकर राक्षसों ने अमृत लाने के लिए जयंत का पीछा किया और काफी मेहनत के बाद उन्हें रास्ते में पकड़ लिया और इसके पश्चात अमृत कशल को पाने के लिए दैत्यों और देवों में 12 दिनों तक संघर्ष होता रहा। उस वक्त देवताओं और दावनों के आपसी युद्ध में अमृत कलश की चार बूंदें पृथ्वी पर भी गिरी थी।
अमृत की पहली बूंद प्रयाग में गिरी, दूसरी बूंद हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन में तथा चौथी बूंद नासिक में गिरी। यहीं कारण है कि इन चार स्थलों में कुंभ का यह पवित्र पर्व मनाया जाता है क्योंकि देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के बराबर होते हैं इसलिए कुंभ का यह पवित्र पर्व 12 वर्ष के अंतराल पर मनाया जाता है।
कुंभ मेला के प्रकार- Type of Kumbh Mela
कुंभ मेला पांच प्रकार के आयोजित किए जाते हैं जो निम्न है- महाकुंभ मेला, पूर्ण कुंभ मेला, अर्ध कुंभ मेला, कुंभ मेला, माघ कुंभ मेला।
महाकुंभ मेला Maha Kumbh Mela : कहा जाता है कि महाकुंभ मेले में हिंदुओं को अपने जीवन काल में एकबार स्नान अवश्य करना चाहिए। समय-समय पर, महाकुंभ मेला हर 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है। यह केवल प्रयाग (इलाहाबाद) में आयोजित किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने एक बार कहा था कि गंगा के पवित्र जल में स्नान या डुबकी लगाने से मनुष्य अपने पापों से मुक्ति पा लेता है।
पूर्ण कुंभ मेला: यह कुम्भ मेला इलाहाबाद में हर 12 साल बाद आयोजित किया जाता है। और बड़ी संख्या में तीर्थयात्री पवित्र संगम में स्नान करने आते हैं। इस शुभ मेले का आयोजन एक महान स्तर पर किया जाता है जिसमें लाखों तीर्थयात्री शामिल होते है।
अर्ध कुंभ मेला : इस मेले को अर्ध कुंभ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह हर छह साल बाद मनाया जाता है। यह प्रत्येक 12 वर्षों में पूर्ण कुंभ मेले के समारोहों के बीच छह वर्ष के अंतराल में आता है। अर्ध कुंभ केवल इलाहाबाद और हरिद्वार में आयोजित किया जाता है।
कुंभ मेला (Kumbh Mela): कुंभ मेला चार विभिन्न स्थानों पर आयोजित किया जाता है – उज्जैन, इलाहाबाद, नासिक और हरिद्वार। कुंभ मेला एक बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है और लाखों भक्त इस समारोह में भाग लेते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं।
माघ कुंभ मेला : माघ कुंभ मेला हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मान्यता है कि माघ मेला की उत्पत्ति ब्रह्मांड के निर्माण के रूप में हुई थी। यह मेला प्रयाग, इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम) के तट पर हर साल आयोजित किया जाता है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, यह हिंदू कैलेंडर के माघ महीने में आयोजित किया जाता है।
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कुंभ शाही और पवित्र स्नान की प्रमुख तिथियां
वैसे तो मकर संक्राति से प्रारम्भ होकर वैशाख पूर्णिमा तक चलने वाले कुम्भ मेला के हर दिन पवित्र स्नान होता है फिर भी कुछ दिवसों पर ख़ास स्नान होते हैं। इसके अलावा तीन शाही स्नान होते हैं। कुम्भ के मौके पर तेरह अखाड़ों के साधु-संत कुम्भ स्थल पर एकत्र होते हैं। प्रमुख कुम्भ स्नान के दिन अखाड़ों के साधु एक शानदार शोभायात्रा के रूप में शाही स्नान के लिए आते हैं। भव्य जुलूस में अखाड़ों के प्रमुख महंतों की सवारी सजे धजे हाथी, पालकी या भव्य रथ पर निकलती हैं। ऐसे में इन साधुओं की जीवन शैली सबके मन में कौतूहल जगाती है विशेषकर नागा साधुओं की, जो कोई वस्त्र धारण नहीं करते तथा अपने शरीर पर राख लगाकर रहते हैं। मार्ग पर खड़े भक्तगण साधुओं पर फूलों की वर्षा करते हैं तथा पैसे आदि चढ़ाते हैं। यह यात्रा विभिन्न अखाड़ा परिसरों से प्रारम्भ होती है। विभिन्न अखाड़ों के लिए शाही स्नान का क्रम निश्चित होता है।
शाही स्नान ले अलावा और भी कुछ महत्वपूर्ण ज्योतिष तिथियां होती हैं, जिनका विशेष महत्व होता है, यहीं कारण है कि इन तिथियों को स्नान करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु तथा साधु इकठ्ठे होते हैं। ये महत्वपूर्ण तिथियां निम्नलिखित है-
- मकर संक्रांति – इस दिन पहले शाही स्नान का आयोजन होता है।
- पौष पुर्णिमा
- मौनी अमवस्या – इस दिन दूसरे शाही स्नान का आयोजन होता है।
- बसंत पंचमी – इस दिन तीसरे शाही स्नान का आयोजन होता है।
- माघ पूर्णिमा
- महाशिवरात्रि – यह कुंभ पर्व का आखिरी दिन होता है।
स्कंद पुराण के अनुसार यहाँ है भगवान शिव की आरामगाह
कुम्भ मेले के बारे में कई रोचक बातें:
- कुम्भ मेले का पौराणिक इतिहास समुद्र मंथन से शुरू होता है। समुद्र मंथन से जब अमृत निकला तो उसे कुम्भ (घड़े) में रखा गया। उस कुम्भ को असुरों ने पहले ले लिया लेकिन भगवान विष्णु ने अमृत कलश असुरों से छीन लिया और भागते समय अमृत चार स्थानों पर गिरा, इसी कारण इन चारों स्थान पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है।
- पारम्परिक रूप से भारत में चार जगह पर कुम्भ मेलों का आयोजन होता है पहला प्रयाग कुम्भ मेला, दूसरा हरिद्वार कुम्भ मेला, तीसरा नासिक कुम्भ मेला और चौथा उज्जैन सिंहस्थ।
- माघ माह में आयोजित होने वाले महा कुम्भ का आयोजन प्रयागराज में होता है। प्रयाग में हिंदू धर्म से तीन पावन नदियों का समावेश होता है, जिसमें गंगा, यमुना और सरस्वती एक साथ बहती हैं।
- कुम्भ का प्रमुख आकर्षण साधु-संतों के 13 अखाड़े होते हैं। हालांकि अब इसमें दो अखाड़े और आ गए हैं। ये अखाड़े हैं- किन्नर अखाड़ा और महिला नागा साधुओं का अखाड़ा।
- तकरीबन दो महीने तक चलने वाले कुम्भ महापर्व के दौरान स्नान की कुछ विशेष तिथियाँ सुनिश्चित हैं उनमें से प्रमुख हैं : मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा, महाशिवरात्रि।
- मान्यता है कि कुम्भ में स्नान करने से व्यक्ति के न केवल पाप खत्म होते हैं बल्कि उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। देवलोक में जाने का रास्ता कुम्भ स्नान से जुड़ा है।
- कुम्भ मेले को यूनेस्को (UNESCO) की मानवता की सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया गया है।
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