Shrimad Bhagwat Geeta की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन हुई थी। इस विशेष तिथि को ‘मोक्षदा एकादशी‘ के रूप में भी मनाया जाता है। गीता एक सार्वभौमिक ग्रंथ है, जो किसी विशेष काल, धर्म, संप्रदाय, या जाति के लिए नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण मानव जाति के लिए है। इसे श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है, इसलिए ग्रंथ में कहीं भी ‘श्रीकृष्ण उवाच’ नहीं, बल्कि ‘श्रीभगवानुवाच’ का प्रयोग किया गया है।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गाकर छंद रूप में उपदेश दिया, इसलिए इसे गीता कहा जाता है। क्योंकि उपदेश देने वाले स्वयं भगवान थे, इसलिए इस ग्रंथ का नाम भगवद्गीता है। गीता माहात्म्य के अनुसार, श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में बताया है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति की प्राप्ति के लिए गीता ही पर्याप्त ग्रंथ है। गीता का मुख्य उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान प्रदान करना माना जाता है।
भगवद्गीता में कई विद्याओं का वर्णन है, जिनमें चार प्रमुख हैं – अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या।
- अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है।
- साम्य विद्या राग-द्वेष से छुटकारा दिलाकर जीव में समत्व भाव पैदा करती है।
- ईश्वर विद्या के प्रभाव से साधक अहंकार और गर्व के विकार से बचता है।
- ब्रह्म विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जगाता है।
श्रीमद्भागवत गीता
गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है। श्रीमद्भागवत गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, इन श्लोकों में कर्म, धर्म, कर्मफल, जन्म, मृत्यु, सत्य, असत्य आदि जीवन से जुड़े मूलभूत प्रश्नों के उत्तर मौजूद हैं।
भगवत गीता के सभी 18 अध्याय के नाम इस प्रकार है:
अध्याय 1: अर्जुनविषादयोगः – कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय 2: साङ्ख्ययोगः – गीता का सार
अध्याय 3: कर्मयोगः – कर्मयोग
अध्याय 4: ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः – दिव्य ज्ञान
अध्याय 5: कर्मसंन्यासयोगः – कर्मयोग-कृष्णभावनाभावित कर्म
अध्याय 6: आत्मसंयमयोगः – ध्यानयोग
अध्याय 7: ज्ञानविज्ञानयोगः – भगवद्ज्ञान
अध्याय 8: अक्षरब्रह्मयोगः – भगवत्प्राप्ति
अध्याय 9: राजविद्याराजगुह्ययोगः – परम गुह्य ज्ञान
अध्याय 10: विभूतियोगः – श्री भगवान् का ऐश्वर्य
अध्याय 11: विश्वरूपदर्शनयोगः – विराट रूप
अध्याय 12: भक्तियोगः – भक्तियोग
अध्याय 13: क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगः – प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
अध्याय 14: गुणत्रयविभागयोगः – प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 15: पुरुषोत्तमयोगः – पुरुषोत्तम योग
अध्याय 16: दैवासुरसम्पद्विभागयोगः – दैवी तथा आसुरी स्वभाव
अध्याय 17: श्रद्धात्रयविभागयोगः – श्रद्धा के विभाग
अध्याय 18: मोक्षसंन्यासयोगः – उपसंहार-संन्यास की सिद्धि
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श्रीमद्भागवत गीता में दिया गया कुछ परम ज्ञान
- परिवर्तन ही संसार का नियम है।
- जो हुआ अच्छे के लिए हुआ। जो हो रहा है वो अच्छे के लिए हो रहा है और जो होगा वो भी अच्छे के लिए होगा।
- मनुष्य को कर्म कर्म करना चहिये, फल की चिंता नहीं।
- आत्मा अमर है, वो न जन्म लेती है और ना ही मरती है।
- मनुष्य खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जाएगा।
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